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शनिवार, 6 सितंबर 2014


'शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनो को शत-शत नमन'
    आपका आशीर्वाद और आपके प्रति मेरा सम्मान किसी दिन का    मुहताज नहीं।   


तमाम उम्र गुज़ार दी दिए जलाने में ,रौशनी  देते  रहे   जमाने को। 
जब शाम हुई ज़िन्दगी की , तो मिट्टी भी न मिली दर बनाने को।  


कलम जो थामी एक ख्याल में ,    हदों तक कलाम  लिखते गए  ,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की , तो स्याही भी न मिली कलम डुबाने को।  


यूँ तो शहनाई बजती रही रात तलक , मौज़े चलती रही पैमानों की ,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की  ,एक अल्फ़ाज़ भी सुनाई न दिया कानो को।  


फलसफा ज़िन्दगी का कुछ ऐसा ही है,आँधियाँ चलती  रही जमाने तक,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की  ,हवा भी न मिली साँस लेने  को।


उम्र गुज़र गयी कई जिंदगियों के लिए  रोटियों  के जुगाड़ में। 
जब शाम हुई ज़िन्दगी की  , निवाला भी न मिला पेट की आग बुझाने को। 

 
उंगली पकड़ के रास्तों  में चलना सिखाते  रहे उम्र दराज़।  
जब शाम हुई ज़िन्दगी की  ,एक उंगली न मिली राह  दिखाने को।