तुम कविता बन जाओ..........
छंदो पद्यों की लहरी ,
छंदो पद्यों की लहरी ,
स्वर शब्दों की साधना ,
सरिता सी कल -कल करो ,
और तुम कविता बन जाओ।
गीत कोई भूला -बिसरा ,
राग कोई विस्मृत सा हो ,
सोई आँखों का सपना बन ,
मलय पवन सी बहो ,
और तुम कविता बन जाओ।
छोटी बूंदों की लड़ियाँ बन ,
घन घमंड को चूर करो ,
आसमान को उद्वेलित कर,
वर्षा की रिमझिम बन जाओ ,
और तुम कविता बन जाओ।
पर्वत के आँचल की हरियाली,
सागर में क्रीड़ा करने वाली ,
मत्स्यावली सी तैर- तैर ,
आलोड़ित ह्रदय को करो ,
और तुम कविता बन जाओ।
मेरे आँगन की बगिया को ,
भाँति भाँति के सुमनों की ,
सुगन्धोरस की गरिमा से ,
चहुँ ओर प्रसारित करो ,
और तुम कविता बन जाओ।
जीवन की अंतिम बेला हो जब ,
कोई विस्मृत ऐसी घटना ,
जो हास्य अधर की बन जाये ,
तुम ऐसी बात सुना जाओ ,
और तुम कविता बन जाओ।