उम्मीद
दिन भर में कई चेहरे ऐसे दिखते है जो निराश,हताश हो चुके है.ज़िन्दगी कभी कभी किसी के लिए इतनी निष्ठुर क्यों हो जाती है .काश कि एक उम्मीद का दीया उस ज़िन्दगी में जला सकूँ ...
जब भी देखती हूँ
तुम्हारी आंखों में
खो जाती हूँ
दर्द की गहराई में
उतरती जाती हूँ गहरे
और गहरे
अकेलेपन के सागर में.
खोजती हूँ
जो जीवन की ललक को .
तो पाती हूँ बहुत असहाय
अकेली
बचने के सभी रास्ते
बंद पाती हूँ .
निराशा और अंधेरे के
समंदर में
खोने लगा है
वजूद अब मेरा
तुम्हे बाहर लाने की
तवज्जो में
तार तार होती
ज़िन्दगी को
बचाने की कवायद
करनी होगी.
इतना तो समझ आया
कि उम्मीद का दामन
फिर किसी एक सिरे से
पकड़ना होगा .
रेशम के तारों सी
उम्मीदों की चादर को
फिर से बिनना होगा
वीराने से असमानों को
सतरंगी रंगों से
सजाना होगा .
नया सूरज लाना होगा
तारों को मानना होगा
ज़िन्दगी को एक बार
फिर से
सजाना ही होगा.............