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रविवार, 18 अप्रैल 2021

 विचित्र संयोग है ,आज विश्व विरासत दिवस है ।


कभी जाओ अगर उस तरफ ,

मेरे गांव तक जाकर 

बस उसकी तस्वीर मुझ तक पहुंचा दो।


खींच लेना एक तस्वीर

उस बाखली की ,पाथरों की छत की,

जहां से सुदूर पहाड़ दिखता है और 

अल्मोड़ा के रास्ते फौज से वापिस आते

चचा/ठुल बाबू /भिन्जू/भुला आवाज़ देकर 

अपने आमद की इत्तिला करते।

और चाची /ठुल ईजा/दीदी/बेड़ी/इजा

चाय की केतली चढ़ा देतीं।


तस्वीर लेना दरवाजे के चौखट की ।

उस उड़की हुई खिड़की की ,

दादाजी और अम्मा की रिटायरमेंट के समय ली गई तस्वीर की।  

मिट्टी के चूल्हे की ,

कासे की परात की जो घर के बहुओं के ब्याह के समय समद्धौले में आईं थीं।

भडडू,ठेकी,लकड़ी के संदूक ,

मंदिर,धूनी , देवताओं की।

कोई उच्यैंड़ की पुड़िया मिले तो उसे उठा लेना,

अम्मा की न जाने कौन सी नामंजूर मन्नत बंधी होगी उसमें।


दाड़िम,बेलपत्री,अमरूद,

और दादाजी के लगाए अखरोट के पंक्तिबद्ध वृक्षों की।

एक तस्वीर काफल के पेड़ की 

और उसके सामने खड़े बुरांश के पेड़ की भी,


गाय के गोठ की,

गोठ के सामने बंधी लकड़ियों की 

जिसमें अम्मा बांधती थी 

गाय के छौनों को।


खेतों के बीच बनी नौले तक जाती पगडंडियों की ,

नौले की

नौले के भीतर सूखते पानी की ,

और बाईं ओर बने देवी और कुलदेवताओं के थान की ,

नीचे वाली सड़क की ,

विशनाथ बाबा के पास वाले पुल की ,

श्मशान की, जहां मेरे पुरखों के कुछ तो अंश दबे होंगे।


और सुनो, हो सके तो 

एक तस्वीर ले लेना मेरे गांव की मिट्टी की , 

मिट्टी की खुशबू की।

मेरे बच्चों को मेरे गांव से मुलाकात करनी है।

रीना पंत

१६/४/२१

मुंबई।


#WorldHeritageDay 

#myvillage