'शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनो को शत-शत नमन'
आपका आशीर्वाद और आपके प्रति मेरा सम्मान किसी दिन का मुहताज नहीं।
तमाम उम्र गुज़ार दी दिए जलाने में ,रौशनी देते रहे जमाने को।
जब शाम हुई ज़िन्दगी की , तो मिट्टी भी न मिली दर बनाने को।
कलम जो थामी एक ख्याल में , हदों तक कलाम लिखते गए ,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की , तो स्याही भी न मिली कलम डुबाने को।
यूँ तो शहनाई बजती रही रात तलक , मौज़े चलती रही पैमानों की ,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की ,एक अल्फ़ाज़ भी सुनाई न दिया कानो को।
फलसफा ज़िन्दगी का कुछ ऐसा ही है,आँधियाँ चलती रही जमाने तक,
जब शाम हुई ज़िन्दगी की ,हवा भी न मिली साँस लेने को।
उम्र गुज़र गयी कई जिंदगियों के लिए रोटियों के जुगाड़ में।
जब शाम हुई ज़िन्दगी की , निवाला भी न मिला पेट की आग बुझाने को।
उंगली पकड़ के रास्तों में चलना सिखाते रहे उम्र दराज़।
जब शाम हुई ज़िन्दगी की ,एक उंगली न मिली राह दिखाने को।