कितना मुश्किल है उन पलो को जीना जहाँ हर पल मौत का कोलाहल हो.ऐसा क्या हो गया कि दर्द की जगह नफरत ने ले ली। इतनी नफरत की निर्दोष बच्चों की ज़िन्दगी को उसकी कीमत देनी पड़ी।
तुम्हारा खून इतना गाढ़ा -
और इतना काला न होता।
कि नसों में ऐसे जम जाता,
अहसासों से परे होकर।
तुम सोच ही न पाये ,
दर्द एक माँ का ,
पिता की तन्हाई ,
बहन की आँखों का प्यार,
घर के हर कोने की आँखों का इंतज़ार।
अगर तुम्हारा यही खून,
थोड़ा पतला ,
और लाल होता,
तो बहता और समझता ,
रिश्तों का दर्द ,
उसी अहसास के रहते शायद ,
तुम्हारे हाथ काँपते ,
और रुक जाते एक पल ,
फिर शायद वो पल ही न आता ,
अगर तुम्हारा खून इतना गाढ़ा -
और काला न होता।
जुल्म की इन्तहा है ये ... इंसानियत मर गयी है जैसे ...
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