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गुरुवार, 3 सितंबर 2015

एक दिन
एक खाका खींच कर दे दो
ताकि मैं जान सकूँ
पैमाने  जो तय किये गए हैं
मेरे लिए ।
और कोशिश में लग जाऊँ.....
 उन पैमानों की माप के
अनुरूप खरी उतरने में ।
अपनी देह को बना दूँ
ऐसी एक मशीन
जिसका बटन तुम्हारी हर उंगली में हो
और तुम्हारी ऊँगली के हिलते ही
मैं रोबोट की तरह
बदल दूँ अपनी देह को
तुम्हारी कल्पना की देह में.......

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