अगर ये सच है
कि हमारे बीच
कोई रिश्ता नहीं
तो फिर क्यों
तुम
रोज़ सवेरे सूरज की किरणे बनकर
मेरे बिस्तर तक पहुच जाते हो
दिन में मेरी रसोई की
खिड़की से आती धूप बन जाते हो
और रात को चाँद की
रौशनी में समां
मेरे अंधेरे को समेटते जाते हो
मेरे अंतर तलक
शीतलता भर्ती जाते हो
मेरे ख्यालों में रोज़ रोज़ आते हो
साये की तरह हर वक़्त
मेरे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को
खुद में डूबते जाते हो
रिश्तों से दूर
क्या नाम दूँ
क्या ये अनाम रिश्ता
हमेशा की तरह
हमेशा रहेगा
अनाम....
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