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रविवार, 5 मई 2019

पाती 2

प्रिय अभिभावक(को)

आपको बधाई। बच्चे अच्छे अंकों से पास हो गए। आपकी और बच्चों की मेहनत रंग लाई। जाने कितने दिन रात जाग जाग कर हम अपने बच्चों का भविष्य संजोते हैं। उनके सुंदर भविष्य को बनाने में अपना तन मन झोंक देते हैं।

मैं जानती हूँ आने वाली पीढ़ी के लिए जिंदगी बहुत कठिन हो रही है।बढ़ती बेरोजगारी,प्रतियोगिताओं की आपाधापी,99% के दौर में आधे आधे अंक का महत्व, सब समझती हूँ। पर  क्या एक परीक्षा ही हमारे बच्चों का भविष्य निर्धारित करती है? अगर किन्हीं कारणों से उसके परीक्षा में कम अंक आए तो  बच्चे का भविष्य समाप्त?

इस दौड़ में हमारा दौड़ना भी लाजमी है।आप तो समझदार हैं।गुजारिश है आपसे इस दौड़ में दो मिनट रूकियेगा और पलटकर देख लीजिएगा क्या हमारा नन्हा भी दौड़ पा रहा है या नहीं। कहीं इस दौड़ में हम उसके  बचपन को तो नहीं झोंक रहे। कहीं हम खो तो नहीं रहे अपने बच्चों को।

दो हाथ समान नहीं होते, दो बच्चे भी समान नहीं होते फिर तुलना कैसी? परीक्षा के लिए हर बच्चा मेहनत करता है चाहे उसने सालों साल मेहनत की हो या नहीं पर परीक्षा के दिन निकट आते ही वो घंटों किताबों के साथ समय गुजारता है, उसे उसकी मेहनत का जितना फल मिल रहा उसे खुले दिल से स्वीकार कीजिये।

हमें खुद को बार बार याद दिलाना पड़ेगा कि हमने हाड़ मांस के मनुष्य को जन्म दिया है। जिसके पास दिलो दिमाग मौजूद है। क्यों न हम बचपन से उन्हें कुछ ऐसे संस्कार दें कि वे एक अच्छे मनुष्य बनें। यकीन मानिए फिर पूरा जीवन सार्थक हो जाएगा। क्या अपनी इच्छाओं को उनपर थोपना या जो हम नहीं कर पाए हमारे बच्चे करें, ये सोचना सही है?

हमारे समय में क्या होता था क्या नहीं, ये आज की पीढ़ी को बताना बेमानी है, आज की पीढ़ी तकनीक के विस्फोटक पर बैठी है। उसके पास उन जानकारियों, मनोरंजन की सुविधा है जो अमूमन हमारे पास नहीं होती थी। अगर आप उसे अपने जमाने से सीख दे रहें हैं तो आपके हाथ में मोबाइल, कंप्यूटर क्या कर रहा है? आप का बेटा न तो किसान का बेटा है न अस्सी रूपये माह  की पगार वाले मास्टर का। फिर आप किस जमाने की बात कर रहें हैं?

एक म्यूनिसिपल स्कूल के गुरु जी ने मुझसे कहा था। मैडम हमारे स्कूल के बच्चे रिजल्ट के  समय आत्महत्या नहीं करते। वे तो सुबह को शाम की रोटी का जुगाड़ करते हैं और शाम को सुबह की रोटी का जुगाड़। इस उदाहरण का भाव समझिये।

पाती लंबी हो गई।आप समझदार हैं इसलिए इतने प्रश्न आपसे पूछ पा रही हूँ।अंत में बस यही कहूँगी आपका बच्चा आपका अपना है। आप उसका भला बुरा दूसरो से अधिक समझते हैं। फिर क्यों भेड़चाल में शामिल होते हैं। चलिए बदल देते हैं अंकों की इस  रेलमपेल को ,एक मोड़ के जरिये ,उस संसार में जहाँ हमारे कोमल मन बच्चे हों, खिलखिलाहट हों, अल्हड़पन हो,सपने हों,प्यार हो और बस जीवन हो ,एक सार्थक सा जीवन।

शुभकामनाओं सहित
रीना पंत

क्रमशः

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