पाती 3
आदरणीय शिक्षाविद् (शिक्षा प्रणाली के निर्माता)
आपको बधाई। आखिर अंकों की दौड़ में आपने बाजी मार ली। बच्चे अखबार, न्यूज़ चैनल में छाए हैं।
मैं भी बहुत खुश हूँ। आखिर बच्चों की खुशी में तो माता पिता और शिक्षक की खुशी है।
एक बात बतानी थी आपको। मैं पिछले कई दशकों से स्कूल में पढ़ा रही हूँ। हर साल जब भी रिजल्ट आता है न ,तो मैं बहुत स्ट्रैस में आ जाती हूँ। आपको लगेगा मैं ये क्या कह रही हूँ।
यकीन जानिए अब रिजल्ट के दिन मेरे लिए मेरे अपने रिजल्ट के दिनों से भी खराब होते हैं। क्योंकि मैं हर साल लगभग 40 बच्चों को पढ़ाती हूँ, जो बोर्ड की परीक्षा देते हैं इनमें अलग अलग योग्यता वाले छात्र होते हैं।
मैं बिलकुल नहीं मानती कि बच्चे पढ़ते नहीं हैं इसलिए कम मार्क्स आते हैं।हर बच्चा परीक्षा और वो भी खासकर बोर्ड परीक्षा के लिए पढ़ता है।कम या ज्यादा अंक निसंदेह उसकी मेहनत ,वस्तु स्थिति और परिवेश के आधार पर आते हैं ।
अब सवाल यह है क्या अंकों की दौड़ में हम बच्चो के संपूर्ण विकास की ओर ध्यान दे रहे हैं?यदि हां ,तो रिजल्ट के समय बच्चे सहमे क्यों रहते हैं?हम डरे क्यों रहते हैं कि कम अंक आने पर बच्चे का क्या होगा? क्या उसे अच्छे कालेज में एडमिशन मिलेगा या नही।यदि नहीं मिलेगा तो उसके भविष्य का क्या होगा।माता पिता डरे रहते हैं बच्चे ने कुछ कर लिया तो?अपनी जान दे दी तो?ओह यह स्थिति बहुत भयानक होती है।नन्ही सी जान जिसने जीवन शुरू भी नहीं किया जिंदगी से हाथ धो बैठा वो भी परीक्षा के कारण।अभी तो उसके जीवन की कई परीक्षा बांकी थीं।क्या हमारी शिक्षा का इतनी अर्थहीन हो गई है कि शिक्षा सिर्फ अंकों का पर्याय बनकर रह गई है।
मेरा अपने देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा भरोसा था पर गत चार पांच वर्षों से जिस तरह की मार्क्स व्यवस्था चल पड़ी है मेरा विश्वास डगमगाने लगा है। हम अपने छात्रों का सर्वांगीण विकास क्यो नहीं कर पा रहे।डाक्टर इंजिनियर की बीमार फसल तैयार करने पर क्यों मजबूर है?क्या दूसरे कोई विषय नहीं हैं जिन्हें पढ़कर बच्चे सफल जीवन की ओर कदम बढाएं?
शिक्षा का गिरता स्तर, अंकों की होड़ हमें कहीं का नहीं छोड़ती।
आपसे निवेदन है।दसवीं बारहवीं के छात्र जीवन के नाजुक मोड़ से गुजरते हैं। अंको के जाल में फंसाकर हम उनके भविष्य को अंधकार में धकेलने का काम नहीं कर सकते हैं।
अच्छे और संवेदनशील शिक्षकों का चयन, अच्छा वेतन, उचित सम्मान शिक्षा को बेहतर बनाने में सहायक होगा। विषयों का उचित ज्ञान, सही चुनाव, सैन्य शिक्षा, खेलकूद, सामान्य ज्ञान को कंपलसरी बनाकर छात्रों का सर्वांगीण विकास पर जोर देना आज की जरूरत है। टैक्नोलॉजी का उचित प्रयोग सिखाना जरुरी है।
चाइल्ड फ्रैंडली इंस्टीट्यूट होने जरूरी हैं।स्किल बेस्ड संस्थान जरूरी हैं।हर विद्यालय,संस्थान में काउंसिलर की सुविधा हो।पुख्ता रोजगार होने जरूरी हैं। जब तक पढाई पूरी न हो तब तक फाइनेंशियल सिक्योरिटी होने से छात्रों में रोजगार का दबाव कम रहेगा।
सही शिक्षा ही एकमात्र उपाय है जिससे देश के विकास सही दिशा में होगा।
धन्यवाद
एक शिक्षिका।
समाप्त।
आदरणीय शिक्षाविद् (शिक्षा प्रणाली के निर्माता)
आपको बधाई। आखिर अंकों की दौड़ में आपने बाजी मार ली। बच्चे अखबार, न्यूज़ चैनल में छाए हैं।
मैं भी बहुत खुश हूँ। आखिर बच्चों की खुशी में तो माता पिता और शिक्षक की खुशी है।
एक बात बतानी थी आपको। मैं पिछले कई दशकों से स्कूल में पढ़ा रही हूँ। हर साल जब भी रिजल्ट आता है न ,तो मैं बहुत स्ट्रैस में आ जाती हूँ। आपको लगेगा मैं ये क्या कह रही हूँ।
यकीन जानिए अब रिजल्ट के दिन मेरे लिए मेरे अपने रिजल्ट के दिनों से भी खराब होते हैं। क्योंकि मैं हर साल लगभग 40 बच्चों को पढ़ाती हूँ, जो बोर्ड की परीक्षा देते हैं इनमें अलग अलग योग्यता वाले छात्र होते हैं।
मैं बिलकुल नहीं मानती कि बच्चे पढ़ते नहीं हैं इसलिए कम मार्क्स आते हैं।हर बच्चा परीक्षा और वो भी खासकर बोर्ड परीक्षा के लिए पढ़ता है।कम या ज्यादा अंक निसंदेह उसकी मेहनत ,वस्तु स्थिति और परिवेश के आधार पर आते हैं ।
अब सवाल यह है क्या अंकों की दौड़ में हम बच्चो के संपूर्ण विकास की ओर ध्यान दे रहे हैं?यदि हां ,तो रिजल्ट के समय बच्चे सहमे क्यों रहते हैं?हम डरे क्यों रहते हैं कि कम अंक आने पर बच्चे का क्या होगा? क्या उसे अच्छे कालेज में एडमिशन मिलेगा या नही।यदि नहीं मिलेगा तो उसके भविष्य का क्या होगा।माता पिता डरे रहते हैं बच्चे ने कुछ कर लिया तो?अपनी जान दे दी तो?ओह यह स्थिति बहुत भयानक होती है।नन्ही सी जान जिसने जीवन शुरू भी नहीं किया जिंदगी से हाथ धो बैठा वो भी परीक्षा के कारण।अभी तो उसके जीवन की कई परीक्षा बांकी थीं।क्या हमारी शिक्षा का इतनी अर्थहीन हो गई है कि शिक्षा सिर्फ अंकों का पर्याय बनकर रह गई है।
मेरा अपने देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा भरोसा था पर गत चार पांच वर्षों से जिस तरह की मार्क्स व्यवस्था चल पड़ी है मेरा विश्वास डगमगाने लगा है। हम अपने छात्रों का सर्वांगीण विकास क्यो नहीं कर पा रहे।डाक्टर इंजिनियर की बीमार फसल तैयार करने पर क्यों मजबूर है?क्या दूसरे कोई विषय नहीं हैं जिन्हें पढ़कर बच्चे सफल जीवन की ओर कदम बढाएं?
शिक्षा का गिरता स्तर, अंकों की होड़ हमें कहीं का नहीं छोड़ती।
आपसे निवेदन है।दसवीं बारहवीं के छात्र जीवन के नाजुक मोड़ से गुजरते हैं। अंको के जाल में फंसाकर हम उनके भविष्य को अंधकार में धकेलने का काम नहीं कर सकते हैं।
अच्छे और संवेदनशील शिक्षकों का चयन, अच्छा वेतन, उचित सम्मान शिक्षा को बेहतर बनाने में सहायक होगा। विषयों का उचित ज्ञान, सही चुनाव, सैन्य शिक्षा, खेलकूद, सामान्य ज्ञान को कंपलसरी बनाकर छात्रों का सर्वांगीण विकास पर जोर देना आज की जरूरत है। टैक्नोलॉजी का उचित प्रयोग सिखाना जरुरी है।
चाइल्ड फ्रैंडली इंस्टीट्यूट होने जरूरी हैं।स्किल बेस्ड संस्थान जरूरी हैं।हर विद्यालय,संस्थान में काउंसिलर की सुविधा हो।पुख्ता रोजगार होने जरूरी हैं। जब तक पढाई पूरी न हो तब तक फाइनेंशियल सिक्योरिटी होने से छात्रों में रोजगार का दबाव कम रहेगा।
सही शिक्षा ही एकमात्र उपाय है जिससे देश के विकास सही दिशा में होगा।
धन्यवाद
एक शिक्षिका।
समाप्त।
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