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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

ekkisvi sadi




यह आपका शहर
 खंडहर सा क्यों है?
हर तरफ कदम निराश से क्यों है?
फूलों की मायूसी 
 कह रही है कहानियां  
क्यों नहीं होता कोलाहल?
जीवन का रंग क्यों नहीं?
सब आडम्बर लगता है
जैसे लोग अजनबी हो खुद में 
क्या  यही है वर्तमान!
जिसे इक्कीसवी सदी कहते है.....



यूँ ही नहीं बनता 
शब्दों का ताना बना
कितने एहसास
 जी के मरते है 
और फिर जीते है
 हर एहसास में तड़प एक उठती  है
 दिल के तार बजते है
 दर्द की बारिशों के बीच
 या फिर ख़ुशी की लहरों में 
 थकी और बुझी  सांसो के बीच
 कई बार उलझते
 कभी गिरते
 कभी उठते बनते बिगडते 
बनता है ताना बना
 कुछ शब्दों का 

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ON DAUGHTERS' WEEK

Cute Girl 2
 बेटियां   प्यारी होती हैं ,
बेटियां सुन्दर होती हैं ,
 बेटियां चंचल होती हैं.
 वे रोटी बनती हैं ,                        
पनघट से पानी भरती हैं,
 कपडे धोती हैं .
माँ की आंखे होती हैं  .
 पिता की लाठी होती हैं .
बेटियां सुंदर होती हैं .
 वे माँ भी होती हैं ,
किसी की पत्नी होती हैं 
बहने होती हैं 
 संस्कृति की कर्णधार होती हैं ,
संस्कारी होती हैं 
 बेटियां प्यारी होती हैं .
वे नौकरी करती हैं , 
वे ईंटें  ढोती हैं ,
 वे घर बनाती हैं  
पति का सहारा  बनती हैं 
बेटों की ताकत होती हैं , 
बेटियां  प्यारी होती हैं .
 वे जलकर मरती हैं
 पत्थर खाकर मरती हैं ,
दहेज़ की बलिवेदी पर चढ़ती हैं
 और कभी गर्भ  में ही मरती हैं 
.बेटियां प्यारी होती हैं 
बेटियां न्यारी होती हैं

रविवार, 27 नवंबर 2011

Waiting for girlfriends by Jsome1


मेरे आंगन में कबूतरी के
 दो नन्हे बच्चे  रुई के फाहों से 
एक दिन  निकले  बाहर 
जब अपने खोलों से.
 मेरी बेटी ने नाम करण  किया उनका
 टिन टिन और डेल्फी नाम रख दिया उनका
 अब हमारी सुबह ,दिन और रात है
 टिन टिन और डेल्फी के नाम,
उनके  खाना औ पानी का ध्यान 
कौवों  से उन्हे बचाना .
 सारी जिम्मेदारी निभाना 
कितना मुश्किल है काम.
अब पति भी फ़ोन कर दिन में दो बार 
जान लेते है उनका हाल चाल
 पडोसी और उनके बच्चे  भी
 बजा कर घंटी बार बार 
 जानने को रहते है बेकरार
 कि टिन टिन क्या कर रही है
 डेल्फी सोया कि नहीं 
उनकी नींद के चक्कर में
 नींद उड़ गयी है मेरी 
सोचती हूँ दिन में उंघती हुई 
कब ये जायेंगे उड़कर अपने साथियों के साथ 
और ख़त्म होगा मेरा काम 
इसी सोच में ख्याल आया
 मेरे अपने बच्चे जब उढ जायेंगे 
अपने साथियों के साथ 
 तब भी तो  ख़त्म हो जायेगा काम
 अपने अकेलेपन के डर से 
तब एक सहमी हुई  हुए उदासी छाई
 और ख्याल को धकिया कर
 कबूतरी के बच्चों  में मन  लगाया 
अगली सुबह जब उठी
 तो देखा न कबूतरी है
 न टिन टिन और डेल्फी 
 बस  बचे है नीड़  के कुछ तिनके
कुछ पंख भर  उनके निशान 
भरी आंखों से देखा तो
 पति ने सर सहलाकर  समझाया
 यही है जिंदगी की वास्तविकता और दस्तूर
 बच्चों   को होना है बड़ा और जाना है दूर
तभी तो बन पायेगा उनका कुछ वजूद
.सच्चाई को समझना  और जानना 
कितना मुश्किल है मानना
 और  इन्तजार  करने लगी  
  फिर आयेगी कबूतरी और
 रुई से बच्चे  होंगे.................

बुधवार, 23 नवंबर 2011


कैसे भूल सकता है
 कोई नवाबो की इस रोड की शान 
वो नहर से निकलती पगडण्डी 
 वो शिव  मंदिर की गूंजती घंटी
 शाहजी की दुकान
 शर्माजी का मकान 
अरुणोदय की रंगत
  भट्टजी  की बसासत 
गुजरे है कई बचपन 
खिले है वहा यौवन 
 आंखों आंखों में होती बाते
 प्यारी सी वो यादें
 नवाबो की उस नगरी में 
 शेरों की कई मादें(हमारे आदरनीय मामाजी लोगों के घर) 
भूलेंगी न वो यादें
 बिसरी हुई वो बाते .......

बच्चो .......
तुम क्या दोगे 
अपनी आने वाली पीढ़ी को ?
मेरे पास तो थे देने को
नीम की बौर ,आम की अमराई.
एवरेस्ट औ महासागर 
हरहराते खेत ,भरभराती नदियाँ 
पर तुम क्या दोगे 
ऊँची मीनारों से पटे शहर,
या नाले बनी नदिया.
मेरे पास तो थे 
गाँधी और विवेकानंद 
भगतसिंह और आजाद 
पर तुम क्या दोगे 
दाउद और इब्राहीम,
राजा और अमरसिंह .
मेरे पास तो थे अमिताभ और हेमा 
लता और रफ़ी 
तुम क्या दोगे
 वो चेहरे जो दोबारा दिखते ही नहीं
मेरे पास तो थे चाँद की चांदनी ,सूरज की तपन  
बारिश से नही धरती 
पर तुम क्या दोगे 
इमारतों से ढका आसमान ,गर्मी की अगन 
सोचो तो 
तुम क्या दोगे
 तुम्हारे  पास तो होगी ही नहीं 
देने  को वे सब चीजें
 जो मैने तुम्हे दी 
और तुमने नष्ट कर दीं
उनकी कद्र नहीं की
 समय रहते नहीं सम्हला 
और खो दी फिर
 तुम क्या दोगे
 बोलो तो
 अपनी आने वाली पीढ़ी को????

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

In the fog...
मुझे याद है 
जब कोहरे  से ढकी कांच की खिड़की में
 ख़ामोशी से नाम लिखा करती थी
 दो नाम........
 एक तेरा एक अपना 
गवाही आज भी देती है
 बर्फ की फाहें 
ख़ामोशी से खडे देवदारु कुछ
 वो सामने की पहाड़ी 
जो न देखने का बहाना करती थी तब
 बर्फ का घूँघट ओढ़ कर ...... 

मंगलवार, 15 नवंबर 2011




सोचा है कई बार
कुछ तो अनगढ़ -अद्बुत
होगा उस पार ........
माँ ने बताया था
 कि उस पार........
 है स्वर्ग या नरक का द्वार 
बना कर्मो को आधार
नियम है ईश्वर  के अपरम्पार  
 कि  करम जो  करे सुंदर 
 मिलेगा उसे   स्वर्ग का द्वार
  और जो करम करे बेकार 
सीधा जाये नरक के पार 
 अभी तक  भ्रान्ति यही  मन  में
 कि सच में होगा क्या उस पार?
अगर कर्म है आधार
 तो कैसे तय करता होगा पालनहार
 कि किसके गले पड़ेगा हार 
और किसे मिलेगा  नरक का द्वार..............

सोमवार, 14 नवंबर 2011

Early Birds
.आज बहुत दिनों बाद  
मेरी सुबह महकी महकी सी है .
आज बहुत दिनों बाद 
मेरे आँगन में धूप बिखरी है
 बहुत दिनों के बाद
 गूंजे है गीत.........
पल्लव खिले खिले से हैं
 बहुत दिनों के बाद 
 मोगरे की भीनी महक से
 महक गया है घर  आँगन 
 मुझे पता ही न था
कि सूरज की किरण ने
 तेरा आंगन जो पहले चूमा है 
फूलों की महक 
तेरे बदन से चुराई है
 कि जो हवा मेरे घर की तरफ आई है
 वो तेरे दरीचे  से होकर आई है ...........