कैसे भूल सकता है
कोई नवाबो की इस रोड की शान
वो नहर से निकलती पगडण्डी
वो शिव मंदिर की गूंजती घंटी
शाहजी की दुकान
शर्माजी का मकान
अरुणोदय की रंगत
भट्टजी की बसासत
गुजरे है कई बचपन
खिले है वहा यौवन
आंखों आंखों में होती बाते
प्यारी सी वो यादें
नवाबो की उस नगरी में
शेरों की कई मादें(हमारे आदरनीय मामाजी लोगों के घर)
भूलेंगी न वो यादें
बिसरी हुई वो बाते .......
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