का करें संचय करना हम अपने पूर्वजों से सीखें हैं।जमा करो ,जमा करो।फिर हमें दोष काहे देते हो!
बेटी की शादी के लिए सोना जमा करो,बुढ़ापे के लिए पैसा जमा करो,साल भर के लिए अनाज जमा करो,प्याज महंगा हो गया ,जमा करो,आटा,चावल,तेल,आलू टमाटर,गोभी ,भिंडी जमा करो।
जब हमने विरोध किया तो सहेली ने आंखें तरेरीं ,'अच्छा खाली हाथ भेजोगी बेटी को! एक सेट तो हो कम से कम ,' बात तो सच्ची है ,हम डर गए।भाई ने आंखें तरेरीं ,"कुछ न रखोगे बुढ़ापे के लिए,कौन देगा जब कमाई नहीं रहेगी तब!''बात तो सच्ची है हम डर गए। डाक्टर,बीमा पौलिसी ,मार्केट सब ने डराया ,सच्ची बातें थीं ,डरते रहे।डर डर के जीने की जगह मरते रहे।अभी अभी पड़ोसी ने अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुए आवाज दी , 'भाभीजी कुछ नहीं मिलेगा अगले हफ्ते से',बात तो सच्ची है ,हम डर गए।
थैला लेकर निकल रहें हैं,देखो क्या क्या मिलता है।
लौटकर।खाली थैला लाए हैं, बाजार में बासी सब्जी है,स्टोर के रैक लगभग खाली हैं।
घर वालों ने डांट पिलाई है।क्या खाएंगे,अब भुगतो ।
हम डरे हुए गुमटी में एक किताब लेकर बैठ गए ,सोच ही रहें हैं ,पहले जो है वो तो निबटाएं।आगे की फिर देखेंगे।हम तो नीरज जी की इन पंक्तियों के मुरीद हैं।
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा
सोचा कि बात तो गलत नहीं है और हम जैसों पर फिट भी बैठता है तो स्वस्थ रहिए ,मस्त रहिए।खाली बैठे हैं कुछ तो ज्ञान देना होगा न! अगर दुबारा हमारी ऐसी पोस्ट नहीं पढ़ना चाहते तो हमारे साथ एक स्वर में बोलिए
#go_corona_go
बेटी की शादी के लिए सोना जमा करो,बुढ़ापे के लिए पैसा जमा करो,साल भर के लिए अनाज जमा करो,प्याज महंगा हो गया ,जमा करो,आटा,चावल,तेल,आलू टमाटर,गोभी ,भिंडी जमा करो।
जब हमने विरोध किया तो सहेली ने आंखें तरेरीं ,'अच्छा खाली हाथ भेजोगी बेटी को! एक सेट तो हो कम से कम ,' बात तो सच्ची है ,हम डर गए।भाई ने आंखें तरेरीं ,"कुछ न रखोगे बुढ़ापे के लिए,कौन देगा जब कमाई नहीं रहेगी तब!''बात तो सच्ची है हम डर गए। डाक्टर,बीमा पौलिसी ,मार्केट सब ने डराया ,सच्ची बातें थीं ,डरते रहे।डर डर के जीने की जगह मरते रहे।अभी अभी पड़ोसी ने अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुए आवाज दी , 'भाभीजी कुछ नहीं मिलेगा अगले हफ्ते से',बात तो सच्ची है ,हम डर गए।
थैला लेकर निकल रहें हैं,देखो क्या क्या मिलता है।
लौटकर।खाली थैला लाए हैं, बाजार में बासी सब्जी है,स्टोर के रैक लगभग खाली हैं।
घर वालों ने डांट पिलाई है।क्या खाएंगे,अब भुगतो ।
हम डरे हुए गुमटी में एक किताब लेकर बैठ गए ,सोच ही रहें हैं ,पहले जो है वो तो निबटाएं।आगे की फिर देखेंगे।हम तो नीरज जी की इन पंक्तियों के मुरीद हैं।
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा
सोचा कि बात तो गलत नहीं है और हम जैसों पर फिट भी बैठता है तो स्वस्थ रहिए ,मस्त रहिए।खाली बैठे हैं कुछ तो ज्ञान देना होगा न! अगर दुबारा हमारी ऐसी पोस्ट नहीं पढ़ना चाहते तो हमारे साथ एक स्वर में बोलिए
#go_corona_go
सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंआभार सर।
जवाब देंहटाएं