रामलीला मुक्तेश्वर की
भाग १
सुबह से रामलीला की पोस्ट देखकर बार बार बचपन में पहुँच जा रही हूँ।
मुक्तेश्वर की रामलीला अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थी। आसपास के गाँव तो रामलीला देखने आते ही थे, सुना है अल्मोड़ा, नैनीताल से भी लोग यहाँ की रामलीला देखने आते थे।
सीढ़ीनुमा ढलान के बीच छोटे से ग्राउंड में स्टेज था। बाईं तरफ आई वी आर आई के वैज्ञानिकों और उनके परिवारों के लिए कुर्सियां लगीं होती। स्टेज के दाईं ओर स्टाफ के लिए। दाईं ओर ही एक तख्त बिछा रहता जिसपर हारमोनियम और तबला रहता। स्टेज को बड़ा बनाने के लिए उसके आगे के भाग में लकड़ी की तख्तियां होती जहाँ दर्शकों का जाना वर्जित होता। सामने की तरफ स्टेज के बिलकुल पास जमीन में बच्चों के बैठने की व्यवस्था होती और फिर सीढ़ी नुमा खेतों में दूर तक लोगों का हुजूम। स्टेज से कुछ दूर समोसा, जलेबी, चाय आदि के स्टौल लगे रहते।
शाम सात बजे से रामलीला शुरू होती। पहाड़ों में काफी ठंड पड़ने लगती है इस समय। लोग शाल, कंबल, ओवरकोट, मफलर आदि गर्म कपड़ों से लदे फदे रामलीला देखने पहुंचते और रात ग्यारह बारह बजे तक बैठे रहते।
हारमोनियम पर'रखियो लाज हमारी नाथ, दीनानाथ' के साथ शुरुआत होती। नौ दिन नौ एपिसोड 😁। सीता स्वयंवर, लक्ष्मण शक्ति, राम बनवास, कैकयी मंथरा संवाद, दशरथ मृत्यु के मंचन के दिन गजब की भीड़ रहती। स्त्रियों की आंखों से गंगा जमुना बहती। सुना है एकबार लक्ष्मण शक्ति के दौरान वास्तव में लक्ष्मण की मृत्यु हो गई।
अभी तो और भी कई किस्से हैं। सबसे जरूरी है स्वेटर बुनाई। परिवार के कई स्वेटर भी इस दौरान बुने जाते। एक दूसरे के डिजाइन कनखियों से नकल करतीं ईजाओं के हाथ तबले की थाप और हारमोनियम के संगीत की लय में चलते थे
भरत मिलाप चौपल्ली यानी चार रास्ते पर होता।
मनोरंजन का यही एक साधन था इसलिए इन दिनों का खूब इंतज़ार रहता।
अद्भुत बचपन की अद्भुत यादेँ मानस में अमिट छाप छोड़ गई।
#रामलीला
सुबह से रामलीला की पोस्ट देखकर बार बार बचपन में पहुँच जा रही हूँ।
मुक्तेश्वर की रामलीला अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थी। आसपास के गाँव तो रामलीला देखने आते ही थे, सुना है अल्मोड़ा, नैनीताल से भी लोग यहाँ की रामलीला देखने आते थे।
सीढ़ीनुमा ढलान के बीच छोटे से ग्राउंड में स्टेज था। बाईं तरफ आई वी आर आई के वैज्ञानिकों और उनके परिवारों के लिए कुर्सियां लगीं होती। स्टेज के दाईं ओर स्टाफ के लिए। दाईं ओर ही एक तख्त बिछा रहता जिसपर हारमोनियम और तबला रहता। स्टेज को बड़ा बनाने के लिए उसके आगे के भाग में लकड़ी की तख्तियां होती जहाँ दर्शकों का जाना वर्जित होता। सामने की तरफ स्टेज के बिलकुल पास जमीन में बच्चों के बैठने की व्यवस्था होती और फिर सीढ़ी नुमा खेतों में दूर तक लोगों का हुजूम। स्टेज से कुछ दूर समोसा, जलेबी, चाय आदि के स्टौल लगे रहते।
शाम सात बजे से रामलीला शुरू होती। पहाड़ों में काफी ठंड पड़ने लगती है इस समय। लोग शाल, कंबल, ओवरकोट, मफलर आदि गर्म कपड़ों से लदे फदे रामलीला देखने पहुंचते और रात ग्यारह बारह बजे तक बैठे रहते।
हारमोनियम पर'रखियो लाज हमारी नाथ, दीनानाथ' के साथ शुरुआत होती। नौ दिन नौ एपिसोड 😁। सीता स्वयंवर, लक्ष्मण शक्ति, राम बनवास, कैकयी मंथरा संवाद, दशरथ मृत्यु के मंचन के दिन गजब की भीड़ रहती। स्त्रियों की आंखों से गंगा जमुना बहती। सुना है एकबार लक्ष्मण शक्ति के दौरान वास्तव में लक्ष्मण की मृत्यु हो गई।
अभी तो और भी कई किस्से हैं। सबसे जरूरी है स्वेटर बुनाई। परिवार के कई स्वेटर भी इस दौरान बुने जाते। एक दूसरे के डिजाइन कनखियों से नकल करतीं ईजाओं के हाथ तबले की थाप और हारमोनियम के संगीत की लय में चलते थे
भरत मिलाप चौपल्ली यानी चार रास्ते पर होता।
मनोरंजन का यही एक साधन था इसलिए इन दिनों का खूब इंतज़ार रहता।
अद्भुत बचपन की अद्भुत यादेँ मानस में अमिट छाप छोड़ गई।
#रामलीला
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहोलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।