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शुक्रवार, 20 मार्च 2020


रश्मि रविजा ने 'इन्नर' भेंट करते हुए एक शर्त रखी थी कि पुस्तक पढ़कर समीक्षा लिखनी होगी।मुझे लिखना तो नहीं आता पर यह कह सकती हूं कि इन्नर पढ़ी और संजो ली दिलो-दिमाग के एक कोने में ।

दरअसल रश्मि जी ने पुस्तक देते हुए इसके संपादन से लेकर प्रकाशन‌ तक की यात्रा का जो विवरण दिया वह बहुत ही दिलचस्प था।किताब की भूमिका में संपादक ने स्वयं इसका जिक्र किया है।"पिछले वर्ष सरस्वती पूजा के समय मेरी माताजी श्रीमती बेली जा ने नए रचनाकारों को आगे लाने के उद्देश्य से पुस्तक निकालने की इच्छा व्यक्त की"।

 मां की इच्छा थी कि कहानियों और कविताओं का एक संग्रह बने ,नए रचनाकार अच्छा लिखते हैं पर रचनाएं प्रकाशित न होने से उनकी पहचान नहीं बन पाती ।मां की इच्छा के अनुरूप पुराने तथा नए लेखकों की कहानियों ,कविताओं ,ग़ज़लों का संकलन किया गया और इन्नर पुस्तक रूप में छप कर आई।जिस पुस्तक के संपादन का उद्देश्य इतना सुंदर हो , साहित्य के प्रति इतना समर्पण हो तो कृति का सार्थक होना लाजिमी है।

सिनीवाली शर्मा की कहानी 'महादान',रश्मि रविजा की कहानी 'आखिर कब तक',विजय शर्मा की' रूप गर्विता' ,विभूति भूषण झा की कहानी 'स्पीचथैरैपी' से लेकर लघु कथाएं,लेख और  कविता,गजल‌ आदि का संकलन है इस पुस्तक में।पुस्तक को दो भागों में बांटा गया है।पहला गद्य भाग है जिसमें कुल ४१ लेखकों की कहानियां /लेख हैं और दूसरा भाग पद्य भाग है जिसमें कविता,गीत,मुक्तक और अंत में ग़ज़ल हैं।

एक ओर स्त्री विमर्श,बाल मनोविज्ञान, सामाजिक सरोकारों पर आधारित कहानियां पाठक को बांधकर रखतीं हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति,समाज को बारीकी से कलम में उतारती कविताओं का चयन पुस्तक के मोहपाश में बांधे रखता है।

बगैर आर्थिक लाभ के पुस्तक को प्रकाशित करने के सराहनीय प्रयास के लिए संपादक विभूति भूषण झा जी तथा सभी रचनाकारों को बधाई।

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