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मंगलवार, 10 मार्च 2020

ईजा से सीखे थे गुजिया में कंगूरे निकालने।कनस्तर भरकर गुजिया बनाने का रिवाज हुआ पहाड़ में।

बिना आलू गुटुक ,पुदीने की चटनी,गुजिया ,अदरक की चाय के  भी कोई होली हुई। कड़ाही न चढ़े तो होली कैसी? भांग न छंने तो होली कैसी? 

गीत ,संगीत ,रंगों से सराबोर रिश्तों में जाति,धर्म,ऊंच- नीच की कोई जगह नहीं थी। उम्र का बंधन नहीं। कोलेस्ट्रॉल और कोरोना का डर नहीं था। 

समय के साथ बदलाव जरूरी है।थके मन और तन होटलों की ड्योड़ियां खोजते हैं। रंगों के बीच रिश्ते और अपनों को खोजते हैं अब। We don't celebrate Holi, no colour please my skin is sensitive.....

न खेलो ,हम तो रंग खेलेंगे,खाएंगे,खिलाएंगे,कड़ाही चढ़ाएंगे,गाएंगे।होली मनाएंगे।कोरोना कोलेस्ट्रॉल को हराएंगे।



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