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शुक्रवार, 2 अगस्त 2013



        प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 'कलम के सिपाही' को शत शत नमन। प्रेमचंद की हर कहानी अद्भुत है। मैं बच्चों को प्रेमचंद की कहानी समय समय पर सुनाना बहुत पसंद करती  हूँ। पता नहीं आजकल के बच्चे उनकी कहानियों की सार्थकता समझ पाते  है या नहीं । पर एक छोटी सी घटना का ज़िक्र करना मुझे अच्छा लगेगा।


       सूरत से वापस लौट रहे थे कार्यक्रम था कि चिरोटी के महालक्ष्मी मंदिर में दर्शन के लिए जायेंगे। बच्चे मान ही नहीं रहे थे क्यूंकि उन्हे  अपने मित्रों से मिलने की जल्दी थी। अचानक ट्रैफिक पुलिस ने गाड़ी रोक ली। चेकिंग चल रही थी। गुजरात बॉर्डर के पास आम बात है चैकिंग। बन्दे ने ड्राइविंग लाइसेंस माँगा .पति ने दिखा दिया। गाड़ी के कागज़ मांगे दिखा दिए। २०१३ का आर.सी.  की हार्ड कॉपी नहीं मिल रही थी। और इसी बात को लेकर वह अड़ गया। हमने उससे कहा की कल तक पास के पुलिस स्टेशन में जमा करवा देंगे पर वह मानने को तैयार न था। तभी एक दूसरी गाड़ी आई और पुलिस  वाला उधर चला गया।  हमने  जान छूटती देखी  और सब समेट गाड़ी दौड़ा दी। लगभग दो किलोमीटर पहुँचकर पतिदेव को याद आया कि ड्राइविंग लाइसेंस  तो उसने वापस ही नहीं किया। वापिस वही पहुँचे  जहाँ चेकिंग चल रही थी। जब हमने ड्राइविंग लाइसेंस  माँगा तो वो देने को तैयार नहीं।बहुत कहासुनी के बाद दो सौ रुपये में ड्राइविंग लाइसेंस  वापिस मिला। हमने चैन की साँस ली और मैने कहा अब तो मंदिर जाना बनता है। तभी मेरा बेटा बोला 'माँ अब मंदिर में चढ़ावा मत चढ़ाना आप ' नमक के दरोगा ' को चढ़ावा चढ़ा चुकी हो। हिंदी विषय को पढ़ने में सदैव आनाकानी करने वाले बेटे के मुह से ये बात सुनकर सिर्फ यही निकला 'यही तो है प्रेमचंद की लेखनी  का चमत्कार। '