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रविवार, 15 जुलाई 2012


पर तुम नहीं आये .......
क्या विवाह की रस्म ,लिए दिए वचन प्रेम की कसौटी है ? लगभग ७५% लोग तो वास्तव में जीवन अकेले जीते है ,क्या गृहस्थ और प्रेम एक दूसरे का पर्याय है?या प्रेम एक भाव है और गृहस्थी एक जिम्मेदारी ....या दोनों एक है ?
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सालों से अबतक 
इंतज़ार रहा 
पर तुम नहीं आए ........
बस सप्तपदी फेरे तक का साथ रहा 
उसके बाद हर दिन राह देखती रही
पर तुम नहीं आए.........
यू तो वचन दोनों ने लिए थे 
मुझको सब था याद  
पर तुमको कुछ याद नहीं  
और तुम नहीं आये...........
रिम झिम बारिश की रातों में,
जागी  रही सोयी नहीं 
अंधरों को ताकती रही 
पर तुम नहीं आए............
एक निवाला मुंह  तक गया 
दूसरे पर तुम्हारा इंतज़ार किया 
पर तुम नहीं आये........
तुम्हारे हर  जन्मदिन पर
लम्बी उम्र की दरकार रही 
देर तक दीप जलाये 
बैठी रही ,पर तुम नहीं आये .......
दिन भर होठो में मुस्कराहट लिए 
लोगों को जताती रही
झूठी प्रेमकहानी सुनाती रही 
तकिये पर औंधे सर रखकर 
कितने आंसू बहा दिए 
जीवन की साँझ भी आ गयी
पर तुम नहीं आये .........

गुरुवार, 12 जुलाई 2012


प्रेम 









कुछ देर और खामोश बैठो 
कि दिल की जुबान कुछ कहना चाहती है 
कोई गीत होंठों  से निकल न जाएँ
कि दिल की धड़कन कुछ गुनगुनाती है .
महसूस करो  इस प्यार की कशिश
नर्म हथेलिओं की रेखाओं  का मिलना 
बंद आंखों से देखने की कोशिश 
लरजते बादलों के बीच कौंधती बिजली .
कि कहीं  हुई बारिश से 
भीगी मिटटी की मीठी खुशबू.
पूरब से निकले सूरज की मासूमियत 
या कि गहराई  रात में निखरी चांदनी की कसक
सम्हल सम्हल के चलती हवा के झोंके  
या कि  ताज़ी मेहँदी  की खुशबूं से
निखरे हाथों की लुनाई.
कुछ देर खामोश बैठो 
जीवन के रंग सुंदर  कुछ देर और जी लो ...........

बुधवार, 4 जुलाई 2012



बस यूँ ही आँख बंद किये 
आँगन में बैठी
धूप पी रही थी
कि एक नन्ही सी तितली
काली पीली धब्बो वाली
बांह पर  आकार बैठ गयी
और बार बार 
पंख फडफडा कर 
अपना अस्तित्व जताने की
कोशिश करती रही .
हवा का झोंका,
मेरी सांसो की गति, 
उसे उड़ा न सकी 
मैं उनींदी आँखों से 
देखती रही उसे
 निहारती रही 
मैं हिलाना नहीं चाहती थी उसे 
उड़ाना भी नहीं चाहा 
न उसे पकड़ना चाहा
 न उसे डराना चाहती थी 
बस महसूस करती रही 
प्रकृति के उस 
अदभुत सौंदर्य को...........