पृष्ठ

गुरुवार, 28 जून 2012

उम्मीद

दिन भर में कई चेहरे ऐसे दिखते है जो निराश,हताश हो चुके है.ज़िन्दगी कभी कभी किसी के लिए इतनी निष्ठुर क्यों हो जाती है .काश कि एक उम्मीद का दीया  उस ज़िन्दगी में  जला सकूँ ...
जब  भी देखती हूँ 
तुम्हारी आंखों में 
खो जाती हूँ
दर्द की गहराई में
उतरती जाती हूँ गहरे 
और गहरे 
अकेलेपन के सागर में.
खोजती  हूँ
जो जीवन की ललक को . 
तो पाती हूँ बहुत  असहाय
अकेली
बचने  के सभी रास्ते
बंद पाती हूँ .
निराशा और अंधेरे के
समंदर में
खोने लगा है
वजूद अब मेरा
तुम्हे  बाहर लाने की
तवज्जो में
तार तार होती
ज़िन्दगी को
बचाने की कवायद
करनी होगी.
इतना तो समझ आया  
कि उम्मीद का दामन
फिर किसी एक सिरे से
पकड़ना होगा .
रेशम के  तारों सी  
उम्मीदों की चादर  को 
फिर से बिनना होगा
वीराने से असमानों को
सतरंगी रंगों से
सजाना होगा .
नया सूरज लाना होगा
तारों को मानना होगा
ज़िन्दगी को एक बार
फिर से
सजाना ही होगा.............
 
 
 
 

मंगलवार, 19 जून 2012


1 june2012.......
अट्ठारह वर्ष यूँ ही गुज़र गए
 आज भी याद है कैसे
 नवेली दुल्हन बनकर आई 
 तुम्हारी आंगन में
कितना शरमाई थी 
कितना घबराई  थी न जाने
कैसे निभेगा जन्मों का साथ 
माँ ने कहा था  जब बांधी थी
 दुपट्टे में गांठ 
अब है निभाना ज़िन्दगी भर  साथ 
और तब से चाल रहे है साथ 
क़ि इतने वर्षों का संकलन 
इतने वर्षों का साथ 
इतनी ऋतुओं का आना और जाना 
न जाने कैसे गुज़र गए
 इतने वर्ष 
तुम्हारी हाथों की पकड़
 कभी कमज़ोर न हुई 
तुम्हारी  आंखों की चमक
 कभी फीकी न पड़ी 
बस अबोले से होंठ 
 करते रहे वादा
जो जन्मो का संगम है
 सदा है निभाना ..............