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मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

new year


वो पाहुने सा 
उमंग से पंख फैलाये
 नवीनता की अनुभूति लिए
भूत को हथेली में  दबाये
सप्तरंगी किरणों में सवार 
 उन्मुक्त आकाश से आ रहा है
 मेरे द्वार 
और मैं द्वार खोले
 बांह फैलाये  अभिनन्दन रत  हूँ 
आस में
 विश्वास से जाग्रत है मेरी आत्मा
 कि नव वर्ष लेकर आयेगा
 नव प्रभात .........
वो पहुना बन जायेगा 
मेरा मीत 
 और में उसके साथ सवारुंगी जीवन 
उन्मुक्त आकाश में पसारुंगी  पंख
 गाऊंगी
 नव जीवन के नव  गीत 

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

विदा


       
               काश,कि जादुई छड़ी आ जाती हाथ में और सब अभी का अभी बदल जाता.सर टिकाए सपना ने बंद आंखों की कोर से ढलकते आंसुओं को रोकने की कोशिश  की. 'न, रोना नहीं है तुम्हे ,एक भी आंसू मत बहाना .मैं  तुमसे जब विदा लूँ तो.... तो न तुम्हारी  आंख में एक आंसू हो और न तुम्हारे  हाथ कांपे.याद रखना सपना ,तुमसे विदाई है. चिर विदाई नहीं .अभी तो मिलन बाकी है असली मिलन',लगा  मानो साँस अटक  गयी है नाक और गले के बीच.अब और नहीं सहा जाता मनु अब रो लेने दो इस घुटन को निकल लेने दो दिल हल्का हो जायेगा तो तुम्हे विदा कर पाऊँगी. न हाथ कापेंगे और न होठ बुदबुदएंगे. आंसुओं का क्या? वे तो पानी है याद है तुम ही तो पोंछ लेते थे होठों से कहते हुए, 'जो सम्हल गया  वो मोती जो निकल गया वो पानी', तो फिर पानी को बह जाने दो. मोती तो सम्हाले  है मैने  उस मिलन के लिए जब हम चंदा की चांदनी में बैठ उन्हे पिरो- पिरो  कर माला बनायेंगे.
          
            'सपना' धीरे से आवाज़ आई,सपना ने खुद को दुरस्त किया खड़ी हुई होठो को फैलाया ,क्या उधार की मुस्कराहट से भी हंसा जा सकता है मनु,जब उदासी हो भीतर तक तो कैसे खुश दिखा जाये.चिर  विदा नहीं पर विदा तो है ,कोई सीमा भी तो नहीं कि तय दिन फिर मिलन होगा. सपना मनु के पास  जाकर लेट गयी .एक   झपकी ले लूँ .थोडा स्फूर्ति आ जाएगी .मनु को भी अच्छा  लगेगा .यही तो मनु ने चाहा कि सपना खुश रहे .ऐसा लगता जब से मनु और सपना एक हुए तब से मनु के जीवन का लक्ष्य  ही एक था सपना का हँसता हुआ चेहरा.कभी सपना उदास होती  तो मनु का हाल बेहाल हो जाता. जाने वो ऐसा क्या कर दे कि सपना खिल उठे.पहले पहल तो सपना कभी भी तुनक जाती, गुस्सा तो उसकी नाक पर बैठा रहता. पिताजी की लाडली जो हुई. पिता ने भी तो हाथों हाथ पला उसे वो कहते है न नाक पर मक्खी  भी न बैठने दी.उसी का तो परिणाम था सपना की तुनक मिजाजी. माँ पिताजी को टोकती  कि ससुराल में क्या करेगी बिटिया, लाड़ प्यार में इतना न बिगाड़ो. तो  पिता जी हंसकर  कहते राजकुमार ले जायेगा और फूलों के झूले में झुलायेगा ,बादलों की गद्दी बिछाएगा  मेरी लाडली के लिए,कही खरोच भी न लगने देगा,और माँ बड़- बड़ करती निकल जाती . सपना पिता से लिपट लाड़ लड़ियाती. 
          पिताजी की जिह्वा में शायद सरस्वती बसती थी.उनका कहा सच हुआ .मनु का आना एक संयोग तो नहीं था तय सा था.किसी पहचान वाले की आंखों का कांटा बनी मैं  न चाहते  हुए  भी बंध गयी मनु के साथ.माँ के माथे की सलवटे कम हुई और पिताजी की तो खुशी का ठिकाना न था. दामाद के रूप में बेटा जो मिल गया.मैं  विदा होकर आई मनु के पास. नया पर अदभुत नहीं यौवन  ने जो अनोखे सपने भरे थे  आंखों में कमोबेश  पूरे नहीं हुए  क्यूंकि यथार्थ  का धरातल कठोर होता है और यौवन  के सपनो का रंग कभी कभी ज्यादा ही रंगीन होता है . हालाँकि मनु ने यथार्थ की कठोरता को अपनी नरम  हथेलिओं से ढक लिया था  मुझे नर्म जमीं पर कदम रखने देने के लिए.
         शुरू में सपना ने बड़ी तुनकमिजाजी  दिखाई ..बार- बार गुस्सा ,जरा सी बात में आसमान खड़ा कर देना.पर मनु जाने किस मिटटी का बना है , मानो अब उसका एक ही लक्ष्य हो सपना के होठों की मुस्कान, मनु की माँ कभी लाड़ से टोकती 'मनु बहुत बिगाड़ रहे हो बहू को',पर माँ  को गले  लगाकर उनको भी मनु ऐसे मना लेते कि नाराज़गी एकदम गायब .क्या बात  है जाने मनु में. क्या प्यार ही है इसके पास,गुस्सा क्यों नहीं आता इस आदमी को ?,नाराज़ क्यों नहीं होता ये? क्या इसकी जिंदगी में कोई परेशानी नहीं है?कोई तनाव नहीं?' तुमने मुझे प्यार करना सिखा दिया मनु',धीरे से मनु का हाथ दबाया सपना ने.मनु के शरीर में थोड़ी हलचल हुई.
           धीरे धीरे जीवन की लय ताल में इतना  सामंजस्य आ गयाथा  कि नदी  की धार सा जीवन कभी धीरे कभी तेज़ चलता यहाँ तक आ गया.सुहास और नीला  का आगमन,उनकी पढाई , नौकरी, विवाह सब  एक- एक कर' पल' बनकर  आये और चले गए. तुमने कभी एहसास ही न होने दिया मनु  कि मेरी भी कोई जिम्मेदारी है .तुम्हारा हाथ थामे में चलती रही .कभी कोशिश नहीं की जानने की कि सब कैसे होता है .कभी कल्पना भी नहीं की कि तुम्हे विदा भी करना होगा . और आज जब वो घडी आई है तुम उस एहसास को भी नहीं जीने दे रहे हो .मुझे रोने दो मनु ,मैं  रोना चाहती हूँ तुम्हारे शक्तिशाली कंधो में सर  रखकर .वो जिम्मेदारी लेना चाहती हूँ तुम्हारी जो अब तक तुमने सम्हाली थी.मुझे भी तो कुछ करने दो तुम्हारे लिए.क्या तुम देखना नहीं चाहोगे  कि मैं  भी कितनी साहसी हूँ .क्यों मुझे इतना कमज़ोर मान रहे हो तुम ?नहीं ,ऐसे तो विदा न कर पाऊँगी तुमको आखिर मैने भी तो सात फेरों की साथ वचन दिया था'.
           मनु का  ठंडा हाथ सपना  हाथ में था.सपना ने  अपनी माथे की बिंदी धीरे से निकाल मनु के माथे में लगा दी,'लो,ये सूरज तुमने हे दिया था मनु ,आज तुम्हे ही देती हूँ .इसकी रौशनी कस एहसास ही अब मेरा पथप्रदर्शन करेगा ,पर  याद रखना मनु ये विदा है चिर विदा नहीं मिलन तो अभी बाकी है चाँद के पार...............



सोमवार, 19 दिसंबर 2011




गुले गुलज़ार हो गया  कोई
 प्यारे इकरार  हो गया कोई 
 अब न कोई बहाना होगा न आने का
 अब तो राहे बहार हो गया कोई 
मुद्दत्त से आरजू की थी 
अब इन्तेज़रें मुद्दत हो गया कोई 
फलसफा  इतना ही नहीं जिंदगी का 
जिंदगी ए फलसफा हो गया कोई ........

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011


आगे कदम बढाते चलो,
 रुको न तुम कभी .
अटको न राह में,
 चूको  न कभी.
 पहाड़ कितना बड़ा हो सामने,
 नाप लो उचाईयों  की डगर.
 सागर को गहरा जितना,
 निकाल लो मोती इस पहर .
रखो बस  ध्यान इतना,
 न डगमगाएं  कदम .
जहा भी  चाह हो,
 निकल आये राह वही.
न गुम हो डगर नज़र से कभी,
 बढे अब तो हर कदम वहा ,
जहा राह हो फूलो से भरी.
 कांटे न आने पाए राहों में,
न छाए अँधेरा आँखों में कभी, 
न गुम हो रौशनी ,
  बढाते जाओ कदम .
 रखो बस ध्यान इतना,
 न डगमगाए कदम.


बुधवार, 14 दिसंबर 2011


तेरे क़दमों  की आहट का ख्याल 
आज भी चौका देता है 
कि सपनो की दुनिया बसाने लगती है आंखे 
भीतर औ बाहर की सनसनी से
 कांप उठते दिल के डाल औ पात 
गर्म हवा भी सिहर सिहर जाती है 
और बहने लगती है आँख की कोर से धार
तटस्थ 'मैं ' नहीं होता झुकने को तैयार
 कि हिलोरे दे रहा मन  का संसार 
जाना भी है मुश्किल 
औ लौटना है कठिन
 कि अब निकल ही चलें 
 सपनो के सफ़र में 
जानकर भी
 कि
 मंजिल की ख्वाहिश  क्यों की ...........


जो  लिखी थी नज़्म कभी तेरे नाम की
 वो   आज   तेरे   नाम   कर    रही    हूँ .
 देरी में ही सही कागजे कलम कर रही हूँ .
बीते  हुए  लम्हे यूँ  ही बिखर जाएँ न  कही
आज  एक बार फिर से उन्हे कैद कर रही हूँ .
सजाये  थे  जो  पल  सपनो  में   कभी
 आज उनको  शहरे  आम  कर  रही    हूँ.
तुझे  गम औ  गिला   हो  कि  न     हो 
तू पढे न पढे ये कलाम कोई फर्क नहीं
 बस  ये नज़्म मै तेरे नाम कर रही हूँ .

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

kagad ki lekhi: For my daughter


For my daughter



बेटी तुम न समझोगी
मेरा प्यार ........
गर्भ में तुम्हरी आहट
देती थी दिल को जो झंकार
बेटी तुम नहीं समझोगी.......
 नन्ही नन्ही हथेलिओं की गर्माहट
तुमारी मीठी किलकारी
बनी मेरे जीवन का संगीत
बेटी तुम न समझोगी.........
तुम्हारी  उनीदी आंखों  में
 देख ली तभी तुम्हारी   बारात
दिन औ रात का यह स्वप्न
बेटी तुम नहीं समझोगी .........
तुम्हारे  बढने का अहसास
बढाती है धड़कन  मेरी
तुम्हारी   आँखों  के सपने
उड़ाते रातों की नींदे मेरी
बेटी तुम नहीं समझोगी ........
एक दिन आयेगा
एक राजकुमार
तुम्हारा  थामेगा जब हाथ
 सजा डोली,पर मन करता चीत्कार
गाते होठ बरसाती आँख
बेटी तुम न समझोगी ........जीवन का आना
तुम्हारे गर्भ में आहट
उसकी नन्ही हथेलिओं की गर्माहट
ममता तुम्हारी  आँख
बनेगा जब जीवन संगीत
बेटी तब तुम समझोगी
बेटी तब तुम समझोगी
मेरा प्यार .......

motherhood




मातृत्व पर्याय है सृजन का अपने बडे बेटे के जन्म से पहले यू ही एक कविता लिखी थी जो आप लोगो के साथ साझा कर रही हूँ 
चारों दिशाओं से 
यकायक आवाज़ ये आने लगी 
अर्थ बदल रहे है जीवन के 
कि  पर्याय बदल गए है.
मौन हो जाओ क्षितिज 
प्रात का बाल हो जाओ सूर्य
बिखेरो चांदनी चंदा
कि सर्जन कर रही हूँ मैं 
सृजन कर रही हूँ मैं 
अपने लाल का.
जरा लाली तो लाओ सूर्य
हरीतिमा बिखेरो पौध
तनिक सुगंध भी तो हो
वायु,,,,सुनो कहा हो तुम 
जरा पास आ जाओ 
हरिण ,तुम्हारी नयन कीप्रतिमता 
जरा उतारने दो. 
हाँ दंतहीन ओठों में मुस्कराहट 
की रेख तो कमल 
बिखरने दो . 
चाँद अपना रंग तो चढ़ने दो
कि सृजन कर रही हूँ मैं 
उफ्नो मत समुद्र
अपना गाम्भीर्य दो 
थोड़ी चंचलता कि जरुरत है 
लहरों धैर्य से ...
पृथ्वी तुम्हारा  गुरुत्व मुझे चाहिए 
Oसौंधी गंध माटी की
कि सृजन कर रही हूँ मैं 
घटाओ एक बार उमड़ो
बिजली एक बार कौंधो 
तनिक साथ दो मेरा 
सृजन है अप्रतिम अनमोल मेरा
अधूरा रह न जाए 
समर्पण तो करो जरा 
कि सृजन कर रही हूँ मैं
एक योगी का .

Evening mist, Lawrencetown Beach
 इक शाम के धुएं  में
 जो तस्वीर खो गयी थी
 सुबह की किरण के साथ
 वो मिल गयी है.......
 खोने में जो तड़प थी 
मिलन में भी वही है 
एक आरजू थी वो 
 जो शाम का धुआ थी
 एक आरजू है ये  
जो सुबह की रौशनी है ..........