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रविवार, 25 मार्च 2012

क्या बनोगी ?
बचपन में जब भी मैं अपनी बेटी से कहती" क्या बनोगी " उत्तर होता "माँ "
थोड़ी बड़ी होने पर उत्तर होता "बाई ".उसकी मासूमियत पर हम खूब हंसते .अब वो और बड़ी हो गयी है कि अब तय करना होगा वास्तव में उसे क्या बनना  है? फिर हमारा  जीवन भौतिकता की  चपेट में कुछ इस तरह  है कि भावनाएं  कही गुम हो जाती है.  इसी उहापोह में क्या हम जान पाते  है हमारे बच्चों  के भीतर क्या चल रहा है ,उन्होने कौन सी दुनिया अपने लिए तय की है ............
 
मैने बिटिया को डांट लगायी
अगर नहीं करोगी पदाई...
तो बन जाओगी बाई.
कुछ तो होश करो,
किताबों को खोलो,
और बांचना शुरू करो .
बिटिया बहुत जरुरी है पढना
अगर अभी नहीं सुधरोगी
तो जीवन भर पछताओगी
चार साल पढ़ोगी
तो चालीस साल कमाओगी
जीवन के सब सुख पाओगी
गाड़ी,जेवर और कार
साथ मिलेगा पति का प्यार
जो न पढ़ पाओगी
नहीं कभी गुन पाओगी
न रोटी न कार
सिर्फ मिलेगी फटकार
पशु सा जीवन पाओगी
सिर्फ बाई बनकर रह जाओगी........
भोली भाली बिटिया बोली
माँ, बाई बनना स्वीकार
हरी चुडिया लाल चुनरिया
पहनकर घर सजाउंगी
तुमसे पाए संस्कार को
आगे और ले जाउंगी
छोटा सा ही होगा घर तो पर
प्यार जहाँ का पाऊँगी
माँ, बेटी बनकर ही बस
सेवा सबकी कर जाउंगी
पाकर कार और जेवर माँ
तुमसे और दूर हो जाउंगी
कम से कम बाई बनकर
पास तुम्हारे रह पाऊँगी
गले लगाकर रही बहाती
धार आंसुओं की मैं माँ
कैसे समझाउं इस नादाँ को
जीवन की कटु सच्चाई ...........

शनिवार, 17 मार्च 2012


बहुत दर्दनाक है बेवक्त पति की मौत के सदमे से उबरना एक पत्नी के लिए .....यू तो किसी भी एक साथी का जाना जीवन में खालीपन भर देता है एक मित्र के पति की मृत्यु ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया .मृत्यु की वास्तविक  भयावहता ने हिला कर रख दिया ,इश्वर उसे शक्ति दे इस हादसे से उबरने की 
 
एक और पति की मृत्यु हो गयी 
और साथ ही पत्नी भी बेमौत मर गयी 
पति रिक्त कर गया 
पत्नी के जीवन की सुबह और साँझ 
और साथ में 
रिक्त हो  गयी  उसकी रसोई 
रसोई का चूल्हा 
जो सुबह शाम जलता था
आस में, एक विश्वास में 
था तो सिर्फ दो निवालों का साथ  
बहुत कुछ तो न था पास 
पर बहुत थी  आस 
अगली सुबह का भरोसा 
अगली शाम का सुकून 
ताउम्र का था वादा 
कैसे टूट गयी वो सांस 
बचा रह गया तमाशा
 सलवटों की कहानी ,
थी उम्र भर निभानी 
कैसा है ये खेला
 क्यों रह गया अकेला 
एक साथी का जाना 
मानो सुरों का जाना 
जीवन का गीत पूरा 
रह गया अधूरा .........

रविवार, 11 मार्च 2012


महिला दिवस 
इस बार भी 
जोर शोर से 
मनाया गया महिला दिवस .......
अखबारों  में 
खूब हुआ प्रचार प्रसार 
पन्ने के पन्ने भर गए
उपहारों के 
इश्तहारों से 
लेखों से 
जाबांज महिलाओं की
 कथाओं से 
अभ्यर्थनाओं से 
और भर गए 
 उपहारों से  बाज़ार
हर  कोई भागता  रहा 
करता रहा खरीदारी 
मनाता रहा महिला दिवस 
और दब गयी 
प्यार की भूख 
कई कराहटों की आवाज़  
 इन उपहारों के बोझ तले 
कि मनाया गया 
जोर शोर से फिर महिला दिवस ..........

गुरुवार, 8 मार्च 2012


होली 

शब्दों  की कड़ियाँ जोड़ रहा था मन  
गुजिया और रंगों में उलझ  रहा था मन  
कोई कविता न बन पाई
  बस करते करते इतना ही कह पाई
 लो हाली भी चली गयी
रंगों से नहलाकर हमको 
सतरंगी सपनो की गागर
 छलक गयी
 कुछ गीत सुनाकर 
कुछ सपने भीगे, कुछ
 भीगी पलकों से देखे  सपने 
आने वाले सुंदर पल ,कुछ देकर
 चली गयी होली, रंगों से
 बहलाकर हमको 
होली आना फिरसे 
रंगों से भर जाना फिर से
 सपने कुछ दिखलाना फिरसे .......
इन्द्रधनुषी रंगों को सबके जीवन में 
भर जाना फिर से