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रविवार, 5 मई 2019

पाती 3

आदरणीय शिक्षाविद्  (शिक्षा प्रणाली के निर्माता)

आपको बधाई। आखिर अंकों की दौड़ में आपने बाजी मार ली। बच्चे अखबार, न्यूज़ चैनल में छाए हैं।

मैं भी बहुत खुश हूँ। आखिर बच्चों की खुशी में तो माता पिता और शिक्षक की खुशी है।

एक बात बतानी थी आपको। मैं पिछले कई दशकों से स्कूल में पढ़ा रही हूँ। हर साल जब भी रिजल्ट आता है न ,तो मैं बहुत स्ट्रैस  में आ जाती हूँ। आपको लगेगा मैं ये क्या कह रही हूँ।

यकीन जानिए अब रिजल्ट के दिन मेरे लिए मेरे अपने रिजल्ट के दिनों से भी खराब होते हैं। क्योंकि मैं हर साल लगभग 40 बच्चों को पढ़ाती हूँ, जो बोर्ड की परीक्षा देते हैं इनमें अलग अलग योग्यता वाले छात्र होते हैं।

मैं बिलकुल नहीं मानती कि बच्चे पढ़ते नहीं हैं इसलिए कम मार्क्स आते हैं।हर बच्चा परीक्षा और वो भी खासकर बोर्ड परीक्षा के लिए पढ़ता है।कम या ज्यादा अंक निसंदेह उसकी मेहनत ,वस्तु स्थिति और परिवेश के आधार पर आते हैं ।

अब सवाल यह है क्या अंकों की दौड़ में हम बच्चो के संपूर्ण विकास की ओर ध्यान दे रहे हैं?यदि हां ,तो रिजल्ट के समय बच्चे सहमे क्यों रहते हैं?हम डरे क्यों रहते हैं कि कम अंक आने पर बच्चे का क्या होगा? क्या उसे अच्छे कालेज में एडमिशन मिलेगा या नही।यदि नहीं मिलेगा तो उसके भविष्य का क्या होगा।माता पिता डरे रहते हैं बच्चे ने कुछ कर लिया तो?अपनी जान दे दी तो?ओह यह स्थिति बहुत भयानक होती है।नन्ही सी जान जिसने जीवन शुरू भी नहीं किया  जिंदगी से हाथ धो बैठा वो भी परीक्षा के कारण।अभी तो उसके जीवन की कई परीक्षा बांकी थीं।क्या हमारी शिक्षा का इतनी अर्थहीन हो गई है कि शिक्षा सिर्फ अंकों का पर्याय बनकर रह गई है।

मेरा अपने देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा भरोसा था पर गत चार पांच वर्षों से जिस तरह की मार्क्स व्यवस्था चल पड़ी है मेरा विश्वास डगमगाने लगा है। हम अपने छात्रों का सर्वांगीण विकास क्यो नहीं कर पा रहे।डाक्टर इंजिनियर की बीमार फसल तैयार करने पर क्यों मजबूर है?क्या दूसरे कोई विषय नहीं हैं जिन्हें पढ़कर बच्चे सफल जीवन की ओर कदम बढाएं?

शिक्षा का गिरता स्तर, अंकों की होड़ हमें कहीं का नहीं छोड़ती।

आपसे निवेदन है।दसवीं बारहवीं के छात्र जीवन के नाजुक मोड़ से गुजरते हैं। अंको के जाल में फंसाकर हम उनके भविष्य को अंधकार में धकेलने का काम नहीं कर सकते हैं।

अच्छे और संवेदनशील शिक्षकों का चयन, अच्छा वेतन, उचित सम्मान शिक्षा को बेहतर बनाने में सहायक होगा। विषयों का उचित ज्ञान, सही चुनाव, सैन्य शिक्षा, खेलकूद, सामान्य ज्ञान को कंपलसरी  बनाकर छात्रों का  सर्वांगीण विकास पर जोर देना आज की जरूरत है। टैक्नोलॉजी का उचित प्रयोग सिखाना जरुरी है।

चाइल्ड फ्रैंडली इंस्टीट्यूट होने जरूरी हैं।स्किल बेस्ड संस्थान जरूरी हैं।हर विद्यालय,संस्थान में काउंसिलर की सुविधा हो।पुख्ता रोजगार होने जरूरी हैं। जब तक पढाई पूरी न हो तब तक फाइनेंशियल सिक्योरिटी होने से छात्रों में रोजगार का दबाव कम रहेगा।

सही शिक्षा ही एकमात्र उपाय है जिससे देश के विकास सही दिशा में होगा।

धन्यवाद
एक शिक्षिका।

समाप्त।
पाती 2

प्रिय अभिभावक(को)

आपको बधाई। बच्चे अच्छे अंकों से पास हो गए। आपकी और बच्चों की मेहनत रंग लाई। जाने कितने दिन रात जाग जाग कर हम अपने बच्चों का भविष्य संजोते हैं। उनके सुंदर भविष्य को बनाने में अपना तन मन झोंक देते हैं।

मैं जानती हूँ आने वाली पीढ़ी के लिए जिंदगी बहुत कठिन हो रही है।बढ़ती बेरोजगारी,प्रतियोगिताओं की आपाधापी,99% के दौर में आधे आधे अंक का महत्व, सब समझती हूँ। पर  क्या एक परीक्षा ही हमारे बच्चों का भविष्य निर्धारित करती है? अगर किन्हीं कारणों से उसके परीक्षा में कम अंक आए तो  बच्चे का भविष्य समाप्त?

इस दौड़ में हमारा दौड़ना भी लाजमी है।आप तो समझदार हैं।गुजारिश है आपसे इस दौड़ में दो मिनट रूकियेगा और पलटकर देख लीजिएगा क्या हमारा नन्हा भी दौड़ पा रहा है या नहीं। कहीं इस दौड़ में हम उसके  बचपन को तो नहीं झोंक रहे। कहीं हम खो तो नहीं रहे अपने बच्चों को।

दो हाथ समान नहीं होते, दो बच्चे भी समान नहीं होते फिर तुलना कैसी? परीक्षा के लिए हर बच्चा मेहनत करता है चाहे उसने सालों साल मेहनत की हो या नहीं पर परीक्षा के दिन निकट आते ही वो घंटों किताबों के साथ समय गुजारता है, उसे उसकी मेहनत का जितना फल मिल रहा उसे खुले दिल से स्वीकार कीजिये।

हमें खुद को बार बार याद दिलाना पड़ेगा कि हमने हाड़ मांस के मनुष्य को जन्म दिया है। जिसके पास दिलो दिमाग मौजूद है। क्यों न हम बचपन से उन्हें कुछ ऐसे संस्कार दें कि वे एक अच्छे मनुष्य बनें। यकीन मानिए फिर पूरा जीवन सार्थक हो जाएगा। क्या अपनी इच्छाओं को उनपर थोपना या जो हम नहीं कर पाए हमारे बच्चे करें, ये सोचना सही है?

हमारे समय में क्या होता था क्या नहीं, ये आज की पीढ़ी को बताना बेमानी है, आज की पीढ़ी तकनीक के विस्फोटक पर बैठी है। उसके पास उन जानकारियों, मनोरंजन की सुविधा है जो अमूमन हमारे पास नहीं होती थी। अगर आप उसे अपने जमाने से सीख दे रहें हैं तो आपके हाथ में मोबाइल, कंप्यूटर क्या कर रहा है? आप का बेटा न तो किसान का बेटा है न अस्सी रूपये माह  की पगार वाले मास्टर का। फिर आप किस जमाने की बात कर रहें हैं?

एक म्यूनिसिपल स्कूल के गुरु जी ने मुझसे कहा था। मैडम हमारे स्कूल के बच्चे रिजल्ट के  समय आत्महत्या नहीं करते। वे तो सुबह को शाम की रोटी का जुगाड़ करते हैं और शाम को सुबह की रोटी का जुगाड़। इस उदाहरण का भाव समझिये।

पाती लंबी हो गई।आप समझदार हैं इसलिए इतने प्रश्न आपसे पूछ पा रही हूँ।अंत में बस यही कहूँगी आपका बच्चा आपका अपना है। आप उसका भला बुरा दूसरो से अधिक समझते हैं। फिर क्यों भेड़चाल में शामिल होते हैं। चलिए बदल देते हैं अंकों की इस  रेलमपेल को ,एक मोड़ के जरिये ,उस संसार में जहाँ हमारे कोमल मन बच्चे हों, खिलखिलाहट हों, अल्हड़पन हो,सपने हों,प्यार हो और बस जीवन हो ,एक सार्थक सा जीवन।

शुभकामनाओं सहित
रीना पंत

क्रमशः
पाती 1

मेरे प्यारे बच्चो,

सभी को बधाई।

परीक्षा के दौर के बाद परिणामों का दौर शुरू हो गया है।एक एक कर बोर्ड परीक्षा तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आ रहे हैं।ये समय तुम्हारे साथ साथ मेरे लिए भी बहुत डरावना और कठिन होता है।मेरे पेट में भी तितलियाँ घूमती हैं।फूल से कोमल दिलों पर अंकों की सजा मिलना मुझे भी विचलित कर देता है।पर परीक्षा है तो परिणामों से तो बचा नहीं जा सकेगा न।

निराश मत होना अगर तुम्हें बोर्ड परीक्षा में नब्बे प्रतिशत से कम अंक आए हैं। निराश मत होना कि तुम्हें अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिल पाएगा। बस जिंदगी की परीक्षा में फेल मत होना और हो भी गए तो इतना दमखम रखना कि फिर से उठकर दौड़ने लगो।

मुझे साहिल जैसे बच्चों पर सच में बहुत गुस्सा आता है। पूरे पांच साल मेडिकल की पढ़ाई को दिए, हमेशा अव्वल रहा और बस अपनी पसंद का विषय न मिल पाया तो जिंदगी से खेल गया। नहीं सोचा कि उसके माता पिता, भाई बहन, दोस्त, उसके बिना कैसे रह रहे होंगे।

याद है चुलबुला  रोहन। कितना परेशान करता था हर टीचर को। पढ़ाई में अच्छा ही तो था। पर बारहवीं में अच्छे अंक नहीं आए तो जान से खेल गया। अभी तक हमारे जेहन में बसी हैं उसकी चुलबुली यादें।

मैं यह नहीं कहती पढ़ना मत। खूब पढ़ाई करना। शिक्षा तुम्हारे भविष्य में वो संबल  बने जो तुम्हें सही मार्ग दर्शन करे।शिक्षा मात्र अंकों का खेल न रहे। अंक न तो तुम्हें उद्दण्ड बनाएं न ही तुम्हारे आत्मविश्वास को कम करे। चाहे कितने भी अंक आएं संवेदना और मानवीयता को बचाए रखना।

खूब जियो, खूब खेलो, खूब पढ़ो, कठिनाइयों से लड़ो और आगे बढ़ो।

तुम्हारी
रीना मैम

क्रमशः