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शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

तुमने एक लाश उठाई मांझी ,
और सब जगह भूचाल आ गया ।
हम तो अनन्त लाशों को रोज उठाते हैं
और कहीं अब भी पत्थर न हिला।
तुम्हारे कंधों पर तो सिर्फ तुम्हारी पत्नी की लाश थी।
हम तो वर्षों से 
क्रोध,अहंकार,ढकोसलों ,अत्याचार,व्याभिचार,
धर्म, राष्ट्रवाद,जातिवाद की लाशों को कंधों पर उठाए जा रहे हैं।
और किसी को भनक भी न लगी।
तुम्हारी पत्नी की लाश कुछ नुमाइन्दों के भरोसे घर तक तो पहुँच गई।
हम तो इनका बोझ उठाते चलते हैं, रूकते हैं, 
और फिर चलते जाते हैं अनंत तक।
मांझी, तुम्हारी पत्नी को तो मुक्ति मिल गई होगी।
हमारे कंधों की लाशों को तो मुक्ति भी न मिल पाएगी।
भाई, निराश न हो,हताश न हो,ये सब हमारा प्रारब्ध  है।
इसे बदलने का प्रयत्न न किया है हमने न करेंगे हम।