पृष्ठ

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

milan


ठहर  जा शाम 
कुछ पल और     
अभी होना है मिलन बाकी
धरा और सूरज का
गुलाबी  रंगतों में डूबना है
धरा को 
कि आते ही शुरू होगी 
चंदा की मधुर शरारत 
किसी ओट से करेगा वो
एक कोशिश सताने की 
कहीं लजा न जाये
दुल्हन सी धरा अलबेली 
समेटे जो हरी चुनरी 
छिपाए नूर सा चेहरा 
अधखुली आँखों से 
बाट जोहती है
न जाने कबसे 
सजाये स्वप्न, न जाने
कितनी रातों को
 मेहँदी रचे हाथों से
 गुंथी माला 
विकल सी है 
प्रतीक्षा में 
अधूरा रह जाये
ये मिलन 
ठहर थोड़ी देर 
कि रात बाकी है ....
झुका  है आसमा भी देख 
सागर ने धरा है मौन 
कही बाधित न कर दे 
कोई हवा का झोका 
पल का मिलन संगम
कि चाँद आने वाला है ........

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मेरा जन्म मुक्तेश्वर की सुरम्य वादियोंमें हुआ. मुक्तेश्वर को भूल पाना ,पल भर भी बिसराना मेरे लिए मुश्किल है .मैं हर पल वहा की हवा को अपने भीतर महसूस करती हूँ ........
हिमालय की सुर्ख 
सफ़ेद पर्वत श्रखलाओं  के नीचे
 हरे देवदार के दरख्तों के बीच
 बुरुंश के लाल फूलों की छटाएं
सफ़ेद  और गुलाबी फूलों से 
लकदख आड़ू-खुबानी के वृक्ष 
काफल-पाको  की 
मधुर ध्वनि का आमंत्रण 
 या कि शिव मंदिर में
 सुबह, दोपहर और ब्रह्ममुहूर्त  में बजता
 घंटिओं का सरगम 
ऊँची पहाड़ी से दिखती 
सर्पीली सड़कों का मंज़र 
जीवन के अंधकार में
 मुखरित  हो 
यहाँ कई मील की दूरी में 
बंद आंखों से चलचित्र 
बन कई बार
 बिना भूले याद दिलाता है
 आज भी प्रकृति से मेरा रिश्ता
 उतना ही गहरा है
 जितना प्रकृति की गोद में 
जन्म लेते समय था .
मित्र 
चलो दोस्त , 
कुछ फुर्सत मिली है 
बिता लें लम्हे साथ  
कुछ बातें 
कुछ किस्से 
कुछ यादें .
कुछ पल और जी ले 
खिलखिला के हंस ले .
दिलों के जोड़-तोड़ 
तमाम बंध खोल  
पंछी से उड़ लें 
समय के आसमान में.
थोड़ी सी और दूरी 
जो रह गयी थी अधूरी 
तय कर ले चलते चलते 
 सागर के साथ साथ .
चंदा की रौशनी में 
एक और कहानी 
तुमको है सुनानी .
वरना तो  व्यस्त कर देंगे
फिर से घर के चूल्हे 
बच्चों  की  किताबें 
राशन की   फेहरिस्त
मेहमानों की आवाजाही 
बस की लम्बी लाइन 
घर से काम और
काम से घर तक की दौड़ 
जिन्दंगी  की आपाधापी
सालों का लम्बा सफ़र 
सालों तक चलने वाला 
कि एक पल भी मिले फुर्सत 
तो जी ले जिंदगी 
चलो दोस्त 
कुछ कर लें बाते प्यारी