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सोमवार, 10 अगस्त 2015

सावन 
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आज ये बादल घनेरे ,
जाने कैसे खेल खेलें।
न जाने क्यों इतराये।
सावन के बहाने चुपके -
चुपके धरा को गले लगायें।


कभी छिपे ये सूरज तले,
कभी सूरज को छिपाएं।
धूप में भीगी सी बूंदे ,
बूंदो से भीगी है धूप।
करे अठखेली हवा से ,
कौन सा ये गीत गाएँ।


इंद्रधनुष से सजा है ,
बीच बादलों के रचा है,
कभी बिखरे चांदनी ,
कभी चाँद को खुद में समाये|
बुझी बुझी सी शाम को ,
आगोश में ले क्यों सताएँ।


बन के लड़ियाँ ज़मी की गोद
में बिखर बिखर जाएं
आज ये बदल घनेरे
कौन सा ये खेल खेलें
न जाने क्यों इतराये।

रविवार, 9 अगस्त 2015

            आदर 
आजकल 'आदर' शब्द के भाव बदल गए है। उसी को आदर मिलता है जो किसी काम का हो ,अपने काम का हो।कैसे संस्कार पोषित कर रहे है हम। समाज को किस ओर ले जा रहे है हम। हम किसी को आदर करना सिखा तो नहीं सकते पर अपने जीवन में आदर के वास्तविक भाव को उतार तो सकते है। हमसे ही नयी पीढ़ी सीखेगी ..........  

चाहते हो पाना  जीवन में 
 अगर मान औ सम्मान
याद रखो देना होगा
 उतना ही दूसरों को  सम्मान।

त्याग दो क्रोध औ घमंड, 
न करो बेवजह अभिमान .
उतना ही पाओगे जीवन में ,
जितना चाहेगा भगवान। 

नेक नियति से करते जाओ, 
जितने  कर  सकते हों  काम .
फल उतना ही पाओगे ,
जीतने कर पाओगे दान। 

जीवन -मरण शाश्वत सत्य है ,
झुठलाना इनको है बेकार। 
बने कर्म ही जीवन युद्ध में ,
तुम्हारे अंतिम हथियार। 

चिल्लाओ मत ,न शोर मचाओ 
आदर पाने को गिर मत जाओ। 
रहो कर्मरत, बढ़ते जाओ, 
जीवन में सहज ही आदर पाओ। 

अफ़सोस करो न ,कभी पछताओ।,
इतना आत्मविश्वास जगाओ ,
दुनिआ चाहे पूरी डोले ,
तुम न कभी भ्रमित हो लड़खड़ाओ। 

याद रहे जीवन की आपाधापी में ,
अपमानित न कोई होने  पाये ,
मान रहे ,अपना भी समझो ,
सम्मानित सबको करते जाओ। 

छोटे से जीवन को अपने ,
इतना मूल्यवान बनाओ। 
आंधी  तूफानो की कोशिश को ,
पथ से सहज ही दूर हटाओ। 

बढ़ते जाओ दृढ निश्चय से ,
कभी न तुम घबराओ। 
सबको आदर देते जाओ ,
खुद भी आदर पाओ।