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बुधवार, 30 सितंबर 2015

किसके चेहरे का नूर चुरा लाये। 
कि चाँद तुम आज सिंदूरी हो गए। 

 Red moon 28.09.15                                                               

रविवार, 27 सितंबर 2015


आज मै प्यार बनाने वाली हूँ|
ज़िन्दगी की कड़ाही में,
समय का तेल डालकर,
नोक -झोंक का तड़का डालने वाली हूँ,
आज में प्यार बनाने वाली हूँ।
संवेदना को छोटे- छोटे भागो में बाँट,
रिश्तों को उसमे डूबा दूंगी.,
नरम हाथो से थपथपाकर,
थोड़ा आँखों की नमी में भिगाकर,
हंसी और कहकहों के मसाले डालने वाली हूँ,
आज मैं प्यार बनाने वाली हूँ।
शांति की चाशनी में,
स्नेह की डिबिया खोल,
गरिमा की सुगंधि से पूर्ण,
आदर के वर्क़ से इसे सजाने वाली हूँ,
आज में प्यार बनाने वाली हूँ।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

एक दिन
एक खाका खींच कर दे दो
ताकि मैं जान सकूँ
पैमाने  जो तय किये गए हैं
मेरे लिए ।
और कोशिश में लग जाऊँ.....
 उन पैमानों की माप के
अनुरूप खरी उतरने में ।
अपनी देह को बना दूँ
ऐसी एक मशीन
जिसका बटन तुम्हारी हर उंगली में हो
और तुम्हारी ऊँगली के हिलते ही
मैं रोबोट की तरह
बदल दूँ अपनी देह को
तुम्हारी कल्पना की देह में.......

सोमवार, 10 अगस्त 2015

सावन 
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आज ये बादल घनेरे ,
जाने कैसे खेल खेलें।
न जाने क्यों इतराये।
सावन के बहाने चुपके -
चुपके धरा को गले लगायें।


कभी छिपे ये सूरज तले,
कभी सूरज को छिपाएं।
धूप में भीगी सी बूंदे ,
बूंदो से भीगी है धूप।
करे अठखेली हवा से ,
कौन सा ये गीत गाएँ।


इंद्रधनुष से सजा है ,
बीच बादलों के रचा है,
कभी बिखरे चांदनी ,
कभी चाँद को खुद में समाये|
बुझी बुझी सी शाम को ,
आगोश में ले क्यों सताएँ।


बन के लड़ियाँ ज़मी की गोद
में बिखर बिखर जाएं
आज ये बदल घनेरे
कौन सा ये खेल खेलें
न जाने क्यों इतराये।

रविवार, 9 अगस्त 2015

            आदर 
आजकल 'आदर' शब्द के भाव बदल गए है। उसी को आदर मिलता है जो किसी काम का हो ,अपने काम का हो।कैसे संस्कार पोषित कर रहे है हम। समाज को किस ओर ले जा रहे है हम। हम किसी को आदर करना सिखा तो नहीं सकते पर अपने जीवन में आदर के वास्तविक भाव को उतार तो सकते है। हमसे ही नयी पीढ़ी सीखेगी ..........  

चाहते हो पाना  जीवन में 
 अगर मान औ सम्मान
याद रखो देना होगा
 उतना ही दूसरों को  सम्मान।

त्याग दो क्रोध औ घमंड, 
न करो बेवजह अभिमान .
उतना ही पाओगे जीवन में ,
जितना चाहेगा भगवान। 

नेक नियति से करते जाओ, 
जितने  कर  सकते हों  काम .
फल उतना ही पाओगे ,
जीतने कर पाओगे दान। 

जीवन -मरण शाश्वत सत्य है ,
झुठलाना इनको है बेकार। 
बने कर्म ही जीवन युद्ध में ,
तुम्हारे अंतिम हथियार। 

चिल्लाओ मत ,न शोर मचाओ 
आदर पाने को गिर मत जाओ। 
रहो कर्मरत, बढ़ते जाओ, 
जीवन में सहज ही आदर पाओ। 

अफ़सोस करो न ,कभी पछताओ।,
इतना आत्मविश्वास जगाओ ,
दुनिआ चाहे पूरी डोले ,
तुम न कभी भ्रमित हो लड़खड़ाओ। 

याद रहे जीवन की आपाधापी में ,
अपमानित न कोई होने  पाये ,
मान रहे ,अपना भी समझो ,
सम्मानित सबको करते जाओ। 

छोटे से जीवन को अपने ,
इतना मूल्यवान बनाओ। 
आंधी  तूफानो की कोशिश को ,
पथ से सहज ही दूर हटाओ। 

बढ़ते जाओ दृढ निश्चय से ,
कभी न तुम घबराओ। 
सबको आदर देते जाओ ,
खुद भी आदर पाओ।





गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

तुम कविता बन जाओ..........


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छंदो  पद्यों की लहरी ,
स्वर शब्दों की साधना ,
सरिता सी कल -कल करो ,
      और तुम कविता बन जाओ। 

गीत कोई भूला -बिसरा ,
राग कोई विस्मृत सा हो ,
सोई आँखों का सपना बन ,
मलय पवन  सी बहो ,
      और तुम कविता बन जाओ। 

छोटी बूंदों की लड़ियाँ बन ,
घन घमंड को चूर करो ,
आसमान  को उद्वेलित कर,
वर्षा की रिमझिम बन जाओ ,
        और तुम कविता बन जाओ। 

पर्वत के आँचल की हरियाली,
सागर में क्रीड़ा करने वाली ,
मत्स्यावली  सी तैर- तैर ,
आलोड़ित ह्रदय को करो ,
        और तुम कविता बन जाओ। 

मेरे आँगन की बगिया को ,
भाँति भाँति के सुमनों की ,
सुगन्धोरस की गरिमा से ,
चहुँ ओर प्रसारित करो ,
       और तुम कविता बन जाओ। 

जीवन की अंतिम बेला हो जब ,
कोई विस्मृत ऐसी घटना ,
जो हास्य अधर की बन जाये ,
तुम  ऐसी बात सुना जाओ ,
        और तुम कविता बन जाओ। 




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उसी के प्रेम  में रची बसी मैं 
उसी के प्रेम से बनी मैं
उसी के साथ ही जन्मी 
और उसी की याद में जली  मैं .......

            २                                                                                         

आज नया सूरज नहीं निकला
नयी धूप नहीं  खिली
बादलों के बीच
फिर भी है उजाला .
         
          3

मानो जीवन रुक गया 
लरजते बादलों से ढका आसमान 
अंधरे साये में
कौंधती बिजली का इंतेज़र  ................
        
            4
तुमने दो बोल क्या बोले 
मैने प्यार समझ लिया .
तुमने एक नज़र देखी 
 मैने पलकें झुका लीं। 

          5

उम्मीदों के इसी दामन के सहारे ,जीने की कशिश लेकर.
उसी राह  पर चल दी ,जो अँधेरी थी बड़ी ही दूर तलक .

शनिवार, 14 मार्च 2015





बहुत थक गयी हूँ ज़िन्दगी, कुछ पल को आराम दे दे.


दौड़ते भागते मंसूबों को ,कुछ पल का विराम दे दे .

   
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