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गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

तुम कविता बन जाओ..........


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छंदो  पद्यों की लहरी ,
स्वर शब्दों की साधना ,
सरिता सी कल -कल करो ,
      और तुम कविता बन जाओ। 

गीत कोई भूला -बिसरा ,
राग कोई विस्मृत सा हो ,
सोई आँखों का सपना बन ,
मलय पवन  सी बहो ,
      और तुम कविता बन जाओ। 

छोटी बूंदों की लड़ियाँ बन ,
घन घमंड को चूर करो ,
आसमान  को उद्वेलित कर,
वर्षा की रिमझिम बन जाओ ,
        और तुम कविता बन जाओ। 

पर्वत के आँचल की हरियाली,
सागर में क्रीड़ा करने वाली ,
मत्स्यावली  सी तैर- तैर ,
आलोड़ित ह्रदय को करो ,
        और तुम कविता बन जाओ। 

मेरे आँगन की बगिया को ,
भाँति भाँति के सुमनों की ,
सुगन्धोरस की गरिमा से ,
चहुँ ओर प्रसारित करो ,
       और तुम कविता बन जाओ। 

जीवन की अंतिम बेला हो जब ,
कोई विस्मृत ऐसी घटना ,
जो हास्य अधर की बन जाये ,
तुम  ऐसी बात सुना जाओ ,
        और तुम कविता बन जाओ। 




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उसी के प्रेम  में रची बसी मैं 
उसी के प्रेम से बनी मैं
उसी के साथ ही जन्मी 
और उसी की याद में जली  मैं .......

            २                                                                                         

आज नया सूरज नहीं निकला
नयी धूप नहीं  खिली
बादलों के बीच
फिर भी है उजाला .
         
          3

मानो जीवन रुक गया 
लरजते बादलों से ढका आसमान 
अंधरे साये में
कौंधती बिजली का इंतेज़र  ................
        
            4
तुमने दो बोल क्या बोले 
मैने प्यार समझ लिया .
तुमने एक नज़र देखी 
 मैने पलकें झुका लीं। 

          5

उम्मीदों के इसी दामन के सहारे ,जीने की कशिश लेकर.
उसी राह  पर चल दी ,जो अँधेरी थी बड़ी ही दूर तलक .