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रविवार, 27 मई 2012








समुंदर की लहर 
बड़ी बेआबरू है जी 
बेलिहाज होकर 
यू ही इतराती 
बलबलाती है, बलखाती 
चली आती है 
न जाने कैसे
किस छोर से 
पागल,
 मिटा कर चली जाती है 
समुंदर की लहर देखो .
कभी गाती कभी डराती
कभी बुलाती अपनी ओर 
कभी उथली कभी धुंधली 
नागिन सी ये
 बलखाती चली आती है 
समुंदर की लहर देखो .
कभी सिमटी कभी बिखरी
 कभी नखरे दिखाती 
 पावों में लिपट जाती 
अधूरी  सी  कभी  पूरी 
समुंदर की लहर देखो. 
कोशिश मैने भी बहुत की
रेत में नाम लिखने की 
 मिटा कर  चली गयी
नाम की गहराई  पर
समुंदर की लहर  देखो
कई घरोदे  भी बने होंगे
कई सपने सजे होंगे 
पर इसे क्या फिकर 
ये नहीं किसकी 
समुंदर की लहर देखो..............