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बुधवार, 24 अगस्त 2011

do haath

A general view of of the blast site near the Opra house Mumbai
बारूदों से खेलते हुए ,
क्या तुमने सोचा है .
 कि जिन हाथों से 
तुम चलाते हो गोली 
वैसे ही कुछ होते होंगे
 दो हाथ  
जो अपने घर के लिए
 दो जून की रोटी जुटाते होंगे
 क्या कभी तुमने सोचा है
 दो हाथ
 आलिंगन में लेते होंगे
 अपने मासूम से बच्चों  के चेहरे 
देखते होंगे स्वप्न कुछ अनजाने 
.दो हाथ 
 किसी बूढे की लाठी
 किसी नवोढ़ा की जाति,
 किसी बहन की राखी
 के बन्धनों में बंधते होंगे
 क्या तुमने कभी सोचा है
 बारूद से सने तुम्हारे
 दो हाथ 
कितनों के  जीवन  के
 रक्त से सनेगे 
कितनी आँखों के सपने टूटेंगे
कितने अरमान छुटेंगे
दो हाथ 
नियामत हैं खुदा क़ी
क्यों करते हो बर्बाद
 इनको रहने दो 
बनाने के लिए 
रिश्तों को निभाने के लिए 
रहने दो   यूँ ही इन्हें 
जमाने के लिए ........ 

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