समुंदर की लहर
बड़ी बेआबरू है जी
बेलिहाज होकर
यू ही इतराती
बलबलाती है, बलखाती
चली आती है
न जाने कैसे
किस छोर से
पागल,
मिटा कर चली जाती है
समुंदर की लहर देखो .
कभी गाती कभी डराती
कभी बुलाती अपनी ओर
कभी उथली कभी धुंधली
नागिन सी ये
बलखाती चली आती है
समुंदर की लहर देखो .
कभी सिमटी कभी बिखरी
कभी नखरे दिखाती
पावों में लिपट जाती
अधूरी सी कभी पूरी
समुंदर की लहर देखो.
कोशिश मैने भी बहुत की
रेत में नाम लिखने की
मिटा कर चली गयी
नाम की गहराई पर
समुंदर की लहर देखो
कई घरोदे भी बने होंगे
कई सपने सजे होंगे
पर इसे क्या फिकर
ये नहीं किसकी
समुंदर की लहर देखो..............
बहुत ही बढ़िया शब्द संयोजन उम्दा पोस्ट....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् pallaviji
हटाएंफिर भी यह कहूँगी कि पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना क्यूंकी मुझे बहुत अपनी सी लगती है यह समादर कि लहरें ....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमुंदर की लहरों के संग कुछ उपमाएं नहीं जमती। जैसे नागिन सी बलखाती...
जवाब देंहटाएंजी ,आगे ध्यान रखूंगी बस जैसा महसूस किया वो लिख दिया ,सुझाव के लिए आभार
हटाएंबहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् prasannvadanji
हटाएंबहुत ही सुन्दर भाव संजोयन है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
धन्यवाद् reenaji
हटाएंसमुंदर की लहर में जीवन की तरंग है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् manojji
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