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सोमवार, 18 मई 2020

मैं शिव को नहीं जानती ।राहुल और रोहित को जानती हूं।पहले मैं वहीं उनके घर के पास पढ़ाने जाती थी।अब सब बच्चों को अपने घर में बुलाने लगी हूं। हां एक बार जब हमने कुछ बच्चों के घरों में कम्प्यूटर लगवाए थे तब मैं उनके घर के भीतर गई । बच्चों ने बताया कि कम्प्यूटर का टेबल पापा ने बनाया ।पापा कारपेंटर हैं।

कंप्यूटर टेबल के बगल में जमीन में गैस का चूल्हा ,पीछे लकड़ी की दीवार बना कर एक कमरा निकाला गया है ।जिसपर एक फोल्डिंग चारपाई के ऊपर कुछ गद्दे और बिस्तर चादर से ढका हुआ। मुंबई के स्लम्स के अधिकतर घर ऐसे ही होते हैं।सर से लगती छत की ऊंचाई की छः बाई आठ की खोली। बहुत मुश्किल जीवन है इनका ।

राहुल और रोहित दोनों बड़े ही प्यारे बच्चे हैं। राहुल का मन पढ़ने में थोड़ा कम लगता है पर उसकी मुस्कान मन मोह लेती है। रोहित अपेक्षाकृत गंभीर और पढ़ाई में ठीक ठाक है। राहुल और रोहित के पिता हैं शिव ।बेहद सीधे और सच्चे इंसान।

लौकडाउन के दौरान मैं व्हाट्सएप पर बच्चों के लिए पढ़ने के लिए कहानियां प्रश्न आदि भेजती रहती हूं और बच्चे अपनी ड्रौईंग या अन्य सामग्री भेजते रहते हैं।कल राहुल ने एक कविता भेजी ।नीचे लिखा था पापा ने लिखी है।यानी शिव ने लिखी है।न जाने शिव कितने पढ़े लिखे हैं।पर कविता साझा कर रही हूं ।कवित्व की बात न करें तो शिव का यह लेखन उसके जीवन के सत्य से जुड़ी विभत्सता का अंश हो सकता है।

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