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सोमवार, 11 जुलाई 2011

Dedicated to school.....who loved us selflessly...

Spring tale

ये विदा तो नहीं
 परंपरा है एक
आशीर्वाद देने की
क्योंकि  में जनता हूँ तुम
 मुझसे दूर नहीं जा रहे
क्योंकि  तुम मुझसे दूर जा ही नहीं सकते
क्योंकि तुम तो मेरे हो अंग हो
संलग्न हो
आत्मा हो .
में माँ या ईश्वर तो नहीं
पर अपना सर्वश्रेष्ठ   तो देने की
कोशिस में निरंतर संघर्ष रत रहा
उतना ही जितना तुम
 पहले दिन से तुमने संघर्ष किया
कलम पकडने से के लिए
दो कदम चलने के लिए
दो कौर खाने के लिए
में भी माँ के सामान ही
साक्षी रहा
संलग्न रहा.
 हाँ में तो
साक्षी  हूँ
तुम्हारी  आढी  तिरछी रेखाओं का
तुम्हारे  डगमगाते क़दमों का . मैने  देखा है तुम्हे
अकेले रोते हुए
 खिलते हुए
शरारत करते हुए
तुम्हारी  चिल्लाहट
 मेरे भीतर तक
समां गयी है कही
तुम्हारी  ख़ामोशी
मुझे सताती है
तुम गिरे तुम उठे तुम दौडे
कई बार मैने तुम्हे  थामा है अपनी बाँहों में
हाँ में साक्षी हूँ तुम्हारे  तनाव
तुम्हारी  उदासी
तुम्हारी  तड़प
पर यकीं मनो
कि में माँ नहीं
तो भी तुम्हारे  हर आंसू के साथ रोया
हर हंसी के साथ किलका
हर  तड़प में तडपा
तुम बिखरे तो में बिखरा
तुम जुडे तो में जुड़ा
तूम  बने तो में बना
इसलिए तो
आज में खुश हूँ
तुम्हारे साथ दो कदम चलने  का गर्व
व्यक्त कर दिया मैने
इस उम्मीद के साथ कि ये दो कदम ,दो कदम नहीं
साथ है जीवन का
इसलिए  तो कह रहा हूँ
यह विदा नहीं
 एक परंपरा है
 आशीर्वाद की
कि आज
एक माँ के सामान
आत्मविश्वास दे रहा हूँ
कि तुम चाहो  भी तो
छोड़ न पाओगे
मेरा साथ
में संलग्न हूँ
में साक्षी हूँ
में साथी हूँ
तुम्हारा सदा से
सदा के लिए.

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