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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

                          विश्वास उठ गया 
           अपनी गलतियों का दोष भाग्य और इश्वर  पर डालते जरा भी नहीं सोचते कि कभी हमारी गलतियों की इन्तहा होगी ?एक तूफान आया और सब अपने साथ बहा के गया।घर,लोग,पशु पेड़ ...हे ईश्वर,जरा भी दया नहीं आई।कितने बच्चे थे ,कितने बूढे  थे कितने लाचार थे।सबको लील लिया .....बहुत शिकायत है तुमसे भगवान ,मनुष्य की  इतनी गलतियों  को अनदेखा  किया और कर लेते .....

यूँ तो मैं आज भी ,
रोज़ .....
दीप जलाती  हूँ 
शंख बजाती  हूँ 
बेलपत्र चढ़ाती  हूँ 
मंत्रोच्चार के साथ 
तुम्हारी आरती गाती हूँ ....
पर तुम पर से 
हे ईश्वर ......
मेरा विश्वास उठ गया है. 
आखिर हम 
तुम्हारे बच्चे  ही तो थे. 
तुम्हारे अपने ही तो थे 
नादाँ थे ....
अज्ञानी थे ....
कुछ ज्यादा
भी तो न किया था 
 पेड़ ही तो कटे थे 
बांध ही तो बांधे थे 
बस थोड़ी गंद ही तो बिखेरी थी 
कुछ घर ही तो बनाये थे 
कुछ पहाड़ ही तो हटाये थे 
चलो नासमझ ही सही. 
पर तुम भी
 कुछ कम न निकले 
तुमने क्या किया 
रौंद दिया 
खोद दिया 
तहस नहस किया 
बेघर कर दिया 
तुमपर अब आस्था न रही .
तुम्हारी सहनशक्ति पर से 
हे ईश्वर 
मेरा विश्वास उठ गया।

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