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बुधवार, 12 अगस्त 2020

 Learning disabilities के प्रति आजकल समाज में जागरूकता तो आ गई है पर उसे अभी भी पूर्ण स्वीकारोक्ति नहीं मिली है।वे बच्चे जिन्हें learning disable tag  किया जाता है,उन बच्चों पर भी इसका प्रभाव तो पड़ता ही है। हम कब सामान्य होने की कोशिश करेंगे।जिओ और जीने दो के उपदेशों को कब अपनाएंगे।अपने observations के आधार पर लिखी कविता।

              अस्तित्व

                    १

वो रोज आती है दौड़ती हुई,

मेरे गले में दोनों हाथ डाल देती है।

मेरे गालों से गाल रगड़ती हुई,

कुछ बताने की कोशिश करती हुई,

फिर असहाय सी हाथ झटक देती है,

कोरों में दो नन्ही बूंद उतर आती हैं उसकी ,

वो फिर धीरे से  बिन कहे चली जाती है।

मैं देख पाती हूं उसकी कसक।

                          २

हर रोज एक नया चित्र उकेरती है पन्नों पर ,

मछली,पक्षी, चांद,नदी और समंदर,

रंग भरती है अद्भुत,लाल ,हरा,नीला पीला।

वह खुशी से इठलाती हुई सबको दिखाती हुई,

आती है कुछ बताने की कोशिश करती हुई।

इन रंगों के बीच

मैं देख पाती हूं उन तस्वीरों में खींची काली रेखा।

                             ३

वह रोज आती है एक नए  सपने के साथ,

जब वो हंसती है तो 

उसके गालों में दो गढ्ढे पड़ जाते हैं,

जो उसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए काफी हैं।

मैं देख पाती हूं उन  गढ्ढों में धंसे डर को।

                             ४ 

वह रोज आती है मुझे बताने अपने बारे में

जताने अपने अस्तित्व के बारे में,

उसका कद बढ़ने लगा है,

कुछ उभारों के साथ,

गालों के गढ्ढे खूबसूरत और खूबसूरत हो गए हैं,

चित्रों के रंग और खुशनुमा हो गए हैं,

उसकी समझ ,अपने लिए और गहरी हो गई है।

इसलिए नहीं ,कि वह बड़ी हो गई है,

इसलिए कि समझने लगी है

वह दूसरों से अलग है।

और हमारे समाज में 

सामान्य और अलग होने के बीच गहरी खाई है।

-रीना पंत

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