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सोमवार, 9 जनवरी 2012

स्मृतियाँ

चलो कुछ और याद कर लें  
भूले हुए  किस्से 
बिसरी हुई कहानी.
 हाथों में हाथ डाले
 खाली सड़कों में घूमना भी
देता  था  मायने  जिंदगी  के . 
सूखे पेड़ों की पत्तियां  भी 
लगती थी गीत गाने .
 पसरी हुई ख़ामोशी
 करती  थी लाख बाते .
दिन हो गए थे गैर 
अपनी थी तब वो राते 
रातों को आधी- आधी
 करते थे चाँद से बातें
 चांदनी थी जब अपनी 
हमसफर  थी  ख़ामोशी
वो लजाते गीत गाते
 गुलाबी होठों की सुर्खिया थी 
आने  लगी थी फिर से 
जीवन में  बासंती बौर 
कैसी थी अपनी हस्ती
 कैसी थी वो मस्ती 
गुम हो  गए  कहाँ 
 फिर  वे ज़िन्दगी के दौर 
रह गए है किस्से 
बिसरी  हुई कहानी. 
चलो कुछ याद कर लें 
 बिसरी हुई कहानी ........

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