
ठहर जा शाम
कुछ पल और
अभी होना है मिलन बाकी
धरा और सूरज का
गुलाबी रंगतों में डूबना है
धरा को
कि आते ही शुरू होगी
चंदा की मधुर शरारत
किसी ओट से करेगा वो
एक कोशिश सताने की
कहीं लजा न जाये
दुल्हन सी धरा अलबेली
समेटे जो हरी चुनरी
छिपाए नूर सा चेहरा
अधखुली आँखों से
बाट जोहती है
न जाने कबसे
सजाये स्वप्न, न जाने
कितनी रातों को
मेहँदी रचे हाथों से
गुंथी माला
विकल सी है
प्रतीक्षा में
अधूरा रह जाये
ये मिलन
ठहर थोड़ी देर
कि रात बाकी है ....
झुका है आसमा भी देख
सागर ने धरा है मौन
कही बाधित न कर दे
कोई हवा का झोका
पल का मिलन संगम
कि चाँद आने वाला है ........