पृष्ठ

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मेरा जन्म मुक्तेश्वर की सुरम्य वादियोंमें हुआ. मुक्तेश्वर को भूल पाना ,पल भर भी बिसराना मेरे लिए मुश्किल है .मैं हर पल वहा की हवा को अपने भीतर महसूस करती हूँ ........
हिमालय की सुर्ख 
सफ़ेद पर्वत श्रखलाओं  के नीचे
 हरे देवदार के दरख्तों के बीच
 बुरुंश के लाल फूलों की छटाएं
सफ़ेद  और गुलाबी फूलों से 
लकदख आड़ू-खुबानी के वृक्ष 
काफल-पाको  की 
मधुर ध्वनि का आमंत्रण 
 या कि शिव मंदिर में
 सुबह, दोपहर और ब्रह्ममुहूर्त  में बजता
 घंटिओं का सरगम 
ऊँची पहाड़ी से दिखती 
सर्पीली सड़कों का मंज़र 
जीवन के अंधकार में
 मुखरित  हो 
यहाँ कई मील की दूरी में 
बंद आंखों से चलचित्र 
बन कई बार
 बिना भूले याद दिलाता है
 आज भी प्रकृति से मेरा रिश्ता
 उतना ही गहरा है
 जितना प्रकृति की गोद में 
जन्म लेते समय था .

4 टिप्‍पणियां: