कविता
मैं बहुत देर तक शब्दों को
पकडती रही,
कविता रचने का प्रयास करती रही
और शब्द उड़ते रहे
आगे -पीछे
दाएँ -बाएं
बनते-बिगडते रहे
कभी बादल बन
विस्तृत आकाश की सीमा
लांघने की कोशिश में विफल
कभी चाँद की चांदनी
में पिघल गए
तो कभी सूरज की गर्मी
में जल गए।
मैं बहुत देर तक दिल और
दिमाग को मिलने का
प्रयास करती रही
कविता रचने का प्रयास करती रही .
शब्दों की धार
कभी तीखी होकर
अपनों को घायल कर देती
तो कभी पनीली हो
दिशा बदल देती
मैं उन्हे कागजों में समेटने का
प्रयास करती रही।
मैं बहुत देर तक शब्दों को
पकडती रही,
कविता रचने का प्रयास करती रही ...........
कविता रचना की प्रक्रिया का भावपूर्ण चित्रण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् सर
हटाएंवाह रीना जी... यह कविता भी कमाल की चीज़ है...जैसे हाथ में न आने में ही उसका अस्तित्व टिका हुआ है...!!
जवाब देंहटाएं