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मंगलवार, 29 नवंबर 2011




यूँ ही नहीं बनता 
शब्दों का ताना बना
कितने एहसास
 जी के मरते है 
और फिर जीते है
 हर एहसास में तड़प एक उठती  है
 दिल के तार बजते है
 दर्द की बारिशों के बीच
 या फिर ख़ुशी की लहरों में 
 थकी और बुझी  सांसो के बीच
 कई बार उलझते
 कभी गिरते
 कभी उठते बनते बिगडते 
बनता है ताना बना
 कुछ शब्दों का 

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