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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

           रोज़ ६.१५ का समय तय है .हम तीनों  नियमानुसार  निकल पडे.तय स्थान है जहाँ शाम को हम walk के लिए जाते है .walk के साथ talk  भी उसी speed से होता है पतियों की बुराई से लेकर बच्चों की पढाई और बाइयों का रोना .......दिन भर की हलचल......सबको साझा करने का वही समय है (ये अलग बात है कि पतले होने की बजाय हमारा वज़न बढ़ता जा रहा है ).
        कल की ही बात है निश्चित  समय पर हम निकल गए .अभी पहला चक्कर लगाते हुए ही हमने अपनी तारीफ की थी किहम अभी भी कितनी स्वस्थ है  हमारे कान आंख और हाथ पैर सब सही सलामत है वरना तो इस उम्र तक आते आते आजकल की महिलाएं रोगों को गले लगा लेती है (गोकि हम बहुत बुज़ुर्ग हों ) 
      थोडा झुटपुट हुआ ही था,बारिश के दिनों में यूँ भी अँधेरा जल्दी हो जाता है गणपति की चहलपहल थी .हम अपनी गप्पों में व्यस्त .... अंतिम चक्कर (कुछ इमारतों के चारों ओर बनी कच्ची  पक्की सड़क पर ही लोग walk   करते है)तभी पीछे से एक हाथ आया और मेरे साथ चल रही महिला के गले में पहनी  सोने की चैन खिंच ली जब तक समझ आता मैं  जोर  से चिल्लाई बाकी दोनों भी चिल्लाने लगी .वह व्यक्ति घबरा गया मैं व्  मेरी दूसरी सहेली उसके पीछे  भागी  घबराहट कि वज़ह से  चेन उसके हाथ से छुट गयी  काफी दूर तक हमने उसका पीछा किया पर वो भाग गया .
         जब ये घटना घटी उस समय जिस ओर वो भगा उस सड़क पर दो नौजवान थे....... थोड़ी दूरी पर दो watchman  बात कर रहे थे .......बिल्डिंग के पास एक महिला अपने  बच्चे को घुमा  रही थी .....सामने से दो अधेड़  उम्र पुरुष आ रहे थे ......सबने हमे सलाह दी कि सोना पहनकर मत निकला करो .......     

2 टिप्‍पणियां:

  1. सोना पहन कर मत निकलो सलाह देने में सिर्फ जबान ही तो लगती है कोई ताकत थोड़े ही लगानी पड़ेगी आज कल कोई किसी के पंगे में पड़ना नहीं चाहता चाहे वही घटना कल को उनकी माँ बहनों के साथ हो

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    1. दरअसल सारे प्रकरण में दुःख की बात यही रही सब सलाह देते रहे पर मानवीयता का मूल्यांकन नहीं हुआ .सोना तो फिर आ जायेगा या दोबारा खरीद लिया जाता है पर उन मूल्यों का क्या जो खोते जा रहे है और वापस आने की गुंजाईश भी खोती जा रही है .....यह भौतिकतावाद हमे कहा ले जायेगा . .

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