फिर बेटी ने कहा
माँ मुझको भी आने दो, अपनी गोद सजाने दो
बनकर आसमान में चंदा ,चांदनी से भर दूंगी
बनकर असमान का सूरज ,मैं रौशनी कर दूंगी
बनकर फूलों की पंखुडिया, अपनी गोद सजाने दो
आने दो माँ ,आने दो माँ ,अपनी गोद सजाने दो
तितली बनकर आसपास ,जब मैं लहराऊंगी
लाल लाल होठों से माँ - माँ कर गाऊँगी
रातों को न जगाउगी माँ ,तुमको न कभी सताउंगी
एक बार आने दो माँ, अपनी गोद सजाने दो
मैं परछाई हूँ तुम्हारी, कैसे खुद से दूर करोगी
क्या लोगों के तानो से तुम ,अब भी डरोगी
मुझको मारकर -मरवाकर क्या तुम जी सकोगी
मुझ को देकर जन्म माँ ,जीवन का गीत गाने दो .
एक बार आने दो माँ अपनी गोद सजाने दो
बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
जवाब देंहटाएंdhanyawad sunil ji
हटाएंsuder kavita sudha
जवाब देंहटाएंthanx sudha
हटाएंwish this entreaty of the girl child could be heard even clearer by the mother's husband and hs family members and society, who put so much emotional pressure on the woman.. beautifully written , Reena ji
जवाब देंहटाएंThanks sadhnaji
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