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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

milan


ठहर  जा शाम 
कुछ पल और     
अभी होना है मिलन बाकी
धरा और सूरज का
गुलाबी  रंगतों में डूबना है
धरा को 
कि आते ही शुरू होगी 
चंदा की मधुर शरारत 
किसी ओट से करेगा वो
एक कोशिश सताने की 
कहीं लजा न जाये
दुल्हन सी धरा अलबेली 
समेटे जो हरी चुनरी 
छिपाए नूर सा चेहरा 
अधखुली आँखों से 
बाट जोहती है
न जाने कबसे 
सजाये स्वप्न, न जाने
कितनी रातों को
 मेहँदी रचे हाथों से
 गुंथी माला 
विकल सी है 
प्रतीक्षा में 
अधूरा रह जाये
ये मिलन 
ठहर थोड़ी देर 
कि रात बाकी है ....
झुका  है आसमा भी देख 
सागर ने धरा है मौन 
कही बाधित न कर दे 
कोई हवा का झोका 
पल का मिलन संगम
कि चाँद आने वाला है ........

10 टिप्‍पणियां:

  1. एहसास का सुमधुर स्वर ..
    बहुत सुन्दर

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  2. कि आते ही शुरू होगी
    चंदा की मधुर शरारत
    किसी ओट से करेगा वो
    एक कोशिश सताने की
    कहीं लजा न जाये
    दुल्हन सी धरा अलबेली ...

    अच्छा प्रस्तुतीकरण !

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  3. बहुत बढिया पेशकारी विचारों की उद्दान की........

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  4. बहुत सुन्दर कोमल भावयुक्त सुन्दर रचना...

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