काश,कि जादुई छड़ी आ जाती हाथ में और सब अभी का अभी बदल जाता.सर टिकाए सपना ने बंद आंखों की कोर से ढलकते आंसुओं को रोकने की कोशिश की. 'न, रोना नहीं है तुम्हे ,एक भी आंसू मत बहाना .मैं तुमसे जब विदा लूँ तो.... तो न तुम्हारी आंख में एक आंसू हो और न तुम्हारे हाथ कांपे.याद रखना सपना ,तुमसे विदाई है. चिर विदाई नहीं .अभी तो मिलन बाकी है असली मिलन',लगा मानो साँस अटक गयी है नाक और गले के बीच.अब और नहीं सहा जाता मनु अब रो लेने दो इस घुटन को निकल लेने दो दिल हल्का हो जायेगा तो तुम्हे विदा कर पाऊँगी. न हाथ कापेंगे और न होठ बुदबुदएंगे. आंसुओं का क्या? वे तो पानी है याद है तुम ही तो पोंछ लेते थे होठों से कहते हुए, 'जो सम्हल गया वो मोती जो निकल गया वो पानी', तो फिर पानी को बह जाने दो. मोती तो सम्हाले है मैने उस मिलन के लिए जब हम चंदा की चांदनी में बैठ उन्हे पिरो- पिरो कर माला बनायेंगे.
'सपना' धीरे से आवाज़ आई,सपना ने खुद को दुरस्त किया खड़ी हुई होठो को फैलाया ,क्या उधार की मुस्कराहट से भी हंसा जा सकता है मनु,जब उदासी हो भीतर तक तो कैसे खुश दिखा जाये.चिर विदा नहीं पर विदा तो है ,कोई सीमा भी तो नहीं कि तय दिन फिर मिलन होगा. सपना मनु के पास जाकर लेट गयी .एक झपकी ले लूँ .थोडा स्फूर्ति आ जाएगी .मनु को भी अच्छा लगेगा .यही तो मनु ने चाहा कि सपना खुश रहे .ऐसा लगता जब से मनु और सपना एक हुए तब से मनु के जीवन का लक्ष्य ही एक था सपना का हँसता हुआ चेहरा.कभी सपना उदास होती तो मनु का हाल बेहाल हो जाता. जाने वो ऐसा क्या कर दे कि सपना खिल उठे.पहले पहल तो सपना कभी भी तुनक जाती, गुस्सा तो उसकी नाक पर बैठा रहता. पिताजी की लाडली जो हुई. पिता ने भी तो हाथों हाथ पला उसे वो कहते है न नाक पर मक्खी भी न बैठने दी.उसी का तो परिणाम था सपना की तुनक मिजाजी. माँ पिताजी को टोकती कि ससुराल में क्या करेगी बिटिया, लाड़ प्यार में इतना न बिगाड़ो. तो पिता जी हंसकर कहते राजकुमार ले जायेगा और फूलों के झूले में झुलायेगा ,बादलों की गद्दी बिछाएगा मेरी लाडली के लिए,कही खरोच भी न लगने देगा,और माँ बड़- बड़ करती निकल जाती . सपना पिता से लिपट लाड़ लड़ियाती.
पिताजी की जिह्वा में शायद सरस्वती बसती थी.उनका कहा सच हुआ .मनु का आना एक संयोग तो नहीं था तय सा था.किसी पहचान वाले की आंखों का कांटा बनी मैं न चाहते हुए भी बंध गयी मनु के साथ.माँ के माथे की सलवटे कम हुई और पिताजी की तो खुशी का ठिकाना न था. दामाद के रूप में बेटा जो मिल गया.मैं विदा होकर आई मनु के पास. नया पर अदभुत नहीं यौवन ने जो अनोखे सपने भरे थे आंखों में कमोबेश पूरे नहीं हुए क्यूंकि यथार्थ का धरातल कठोर होता है और यौवन के सपनो का रंग कभी कभी ज्यादा ही रंगीन होता है . हालाँकि मनु ने यथार्थ की कठोरता को अपनी नरम हथेलिओं से ढक लिया था मुझे नर्म जमीं पर कदम रखने देने के लिए.
शुरू में सपना ने बड़ी तुनकमिजाजी दिखाई ..बार- बार गुस्सा ,जरा सी बात में आसमान खड़ा कर देना.पर मनु जाने किस मिटटी का बना है , मानो अब उसका एक ही लक्ष्य हो सपना के होठों की मुस्कान, मनु की माँ कभी लाड़ से टोकती 'मनु बहुत बिगाड़ रहे हो बहू को',पर माँ को गले लगाकर उनको भी मनु ऐसे मना लेते कि नाराज़गी एकदम गायब .क्या बात है जाने मनु में. क्या प्यार ही है इसके पास,गुस्सा क्यों नहीं आता इस आदमी को ?,नाराज़ क्यों नहीं होता ये? क्या इसकी जिंदगी में कोई परेशानी नहीं है?कोई तनाव नहीं?' तुमने मुझे प्यार करना सिखा दिया मनु',धीरे से मनु का हाथ दबाया सपना ने.मनु के शरीर में थोड़ी हलचल हुई.
धीरे धीरे जीवन की लय ताल में इतना सामंजस्य आ गयाथा कि नदी की धार सा जीवन कभी धीरे कभी तेज़ चलता यहाँ तक आ गया.सुहास और नीला का आगमन,उनकी पढाई , नौकरी, विवाह सब एक- एक कर' पल' बनकर आये और चले गए. तुमने कभी एहसास ही न होने दिया मनु कि मेरी भी कोई जिम्मेदारी है .तुम्हारा हाथ थामे में चलती रही .कभी कोशिश नहीं की जानने की कि सब कैसे होता है .कभी कल्पना भी नहीं की कि तुम्हे विदा भी करना होगा . और आज जब वो घडी आई है तुम उस एहसास को भी नहीं जीने दे रहे हो .मुझे रोने दो मनु ,मैं रोना चाहती हूँ तुम्हारे शक्तिशाली कंधो में सर रखकर .वो जिम्मेदारी लेना चाहती हूँ तुम्हारी जो अब तक तुमने सम्हाली थी.मुझे भी तो कुछ करने दो तुम्हारे लिए.क्या तुम देखना नहीं चाहोगे कि मैं भी कितनी साहसी हूँ .क्यों मुझे इतना कमज़ोर मान रहे हो तुम ?नहीं ,ऐसे तो विदा न कर पाऊँगी तुमको आखिर मैने भी तो सात फेरों की साथ वचन दिया था'.
मनु का ठंडा हाथ सपना हाथ में था.सपना ने अपनी माथे की बिंदी धीरे से निकाल मनु के माथे में लगा दी,'लो,ये सूरज तुमने हे दिया था मनु ,आज तुम्हे ही देती हूँ .इसकी रौशनी कस एहसास ही अब मेरा पथप्रदर्शन करेगा ,पर याद रखना मनु ये विदा है चिर विदा नहीं मिलन तो अभी बाकी है चाँद के पार...............
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