तेरे क़दमों की आहट का ख्याल
आज भी चौका देता है
कि सपनो की दुनिया बसाने लगती है आंखे
भीतर औ बाहर की सनसनी से
कांप उठते दिल के डाल औ पात
गर्म हवा भी सिहर सिहर जाती है
और बहने लगती है आँख की कोर से धार
तटस्थ 'मैं ' नहीं होता झुकने को तैयार
कि हिलोरे दे रहा मन का संसार
जाना भी है मुश्किल
औ लौटना है कठिन
कि अब निकल ही चलें
सपनो के सफ़र में
जानकर भी
कि
मंजिल की ख्वाहिश क्यों की ...........
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