मातृत्व पर्याय है सृजन का अपने बडे बेटे के जन्म से पहले यू ही एक कविता लिखी थी जो आप लोगो के साथ साझा कर रही हूँ
चारों दिशाओं से
यकायक आवाज़ ये आने लगी
अर्थ बदल रहे है जीवन के
कि पर्याय बदल गए है.
मौन हो जाओ क्षितिज
प्रात का बाल हो जाओ सूर्य
बिखेरो चांदनी चंदा
कि सर्जन कर रही हूँ मैं
सृजन कर रही हूँ मैं
अपने लाल का.
जरा लाली तो लाओ सूर्य
हरीतिमा बिखेरो पौध
तनिक सुगंध भी तो हो
वायु,,,,सुनो कहा हो तुम
जरा पास आ जाओ
हरिण ,तुम्हारी नयन कीप्रतिमता
जरा उतारने दो.
हाँ दंतहीन ओठों में मुस्कराहट
की रेख तो कमल
बिखरने दो .
चाँद अपना रंग तो चढ़ने दो
कि सृजन कर रही हूँ मैं
उफ्नो मत समुद्र
अपना गाम्भीर्य दो
थोड़ी चंचलता कि जरुरत है
लहरों धैर्य से ...
पृथ्वी तुम्हारा गुरुत्व मुझे चाहिए
Oसौंधी गंध माटी की
कि सृजन कर रही हूँ मैं
घटाओ एक बार उमड़ो
बिजली एक बार कौंधो
तनिक साथ दो मेरा
सृजन है अप्रतिम अनमोल मेरा
अधूरा रह न जाए
समर्पण तो करो जरा
कि सृजन कर रही हूँ मैं
एक योगी का .
MAA KI KOKH
जवाब देंहटाएंSEENCHTI NOV MAAS
JEEVAN DHARA
जवाब देंहटाएंMAA KI KOKH
SEENCHTI NOV MAAS
JEEVAN DHARA
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SEENCHTI NOV MAAS
JEEVAN DHARA