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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012


वसंत  1
कुनकुनी धूप ने याद दिलाया 
लो, शायद  वसंत फिर आया .
पेड़ो की नई कोपले, 
सरसों की पीली चदरिया,  
आम के बौर,
वासंती बयार ,
 कोयल  के गीत,
 हुई पुरानी रीत
 मन  ने फिर भी गीत गया
 लो, शायद  फिर वसंत आया ........
शाम की रंगीनियों   में,
थिरकते कदमों के साथ ,
हाथ में गिलास थामे ,
बहुत से 'डे'  मनाते,
आता किसे है याद ,
कि वसंत आया.........
भाभी की देवरों के साथ, 
वो प्यारी सी छेड़-छाड़,
आंखों में मदहोशियाँ ,
यौवन की वो  बहार,
गले में बांधे,
 पीले पीले रुमाल, 
होली के मधुर गीत, 
हुई पुरानी रीत ,
मन ने फिर भी गीत गाया,
लो ,शायद वसंत आया........ 
 अचानक एस. एम् एस.के साथ 
किसी ने याद दिलाया 
लो, शायद वसंत आया ........






ओ  बसंत 11

ओ बसंत !
मुझे प्रतीक्षा है तुम्हारी 
हर क्षण .
हर पल .
क्यूंकि मुझे पसंद है .......
फूलों का खिलना ,
कोयल की कूक,
आम की बौर 
का आना .
ओ बसंत !
मुझे प्रतीक्षा है तुम्हारी ,
हर क्षण .
हर पल .
क्यूंकि मुझे पसंद है .......
मंद  हवा में ,
यूँ ही टहलना ,
गोधुली में,
 प्रवासिओं को लौटते देखना ,
ये सच है 
हाँ बसंत !
तुम आना 
यूँ ही ......
सदैव .
क्यूंकि तुम्हारे  आने से मेरे जीवन की 
उन्मुक्तता  लौट आती है .
बूढी होती 
मेरी मानसिकता ,
एक बार फिर यौवन की दहलीज़ 
में लौट आती है .
मेरे गाँव की याद 
मेरे शहरीपन  में 
छाने लगती है .
ढोलकों की थाप,
सरसों का लहलहाना 
याद आता है .
इसलिए 
ओ बसंत !
मुझे प्रतीक्षा है तुम्हारी ...........

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