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मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

motherhood




मातृत्व पर्याय है सृजन का अपने बडे बेटे के जन्म से पहले यू ही एक कविता लिखी थी जो आप लोगो के साथ साझा कर रही हूँ 
चारों दिशाओं से 
यकायक आवाज़ ये आने लगी 
अर्थ बदल रहे है जीवन के 
कि  पर्याय बदल गए है.
मौन हो जाओ क्षितिज 
प्रात का बाल हो जाओ सूर्य
बिखेरो चांदनी चंदा
कि सर्जन कर रही हूँ मैं 
सृजन कर रही हूँ मैं 
अपने लाल का.
जरा लाली तो लाओ सूर्य
हरीतिमा बिखेरो पौध
तनिक सुगंध भी तो हो
वायु,,,,सुनो कहा हो तुम 
जरा पास आ जाओ 
हरिण ,तुम्हारी नयन कीप्रतिमता 
जरा उतारने दो. 
हाँ दंतहीन ओठों में मुस्कराहट 
की रेख तो कमल 
बिखरने दो . 
चाँद अपना रंग तो चढ़ने दो
कि सृजन कर रही हूँ मैं 
उफ्नो मत समुद्र
अपना गाम्भीर्य दो 
थोड़ी चंचलता कि जरुरत है 
लहरों धैर्य से ...
पृथ्वी तुम्हारा  गुरुत्व मुझे चाहिए 
Oसौंधी गंध माटी की
कि सृजन कर रही हूँ मैं 
घटाओ एक बार उमड़ो
बिजली एक बार कौंधो 
तनिक साथ दो मेरा 
सृजन है अप्रतिम अनमोल मेरा
अधूरा रह न जाए 
समर्पण तो करो जरा 
कि सृजन कर रही हूँ मैं
एक योगी का .

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